स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय जीवनी, 2023 जयंती एवम् 9 अनमोल वचन, शैक्षिक विचार, शिक्षा पर विचार, शादी, निबंध [Swami Vivekananda Biography Wikipedia in Hindi, Quotes, Jayanti, birthday, Jivan Parichay, Books, images, photo etc.] * Biography of swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय *
Table of Contents
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय संक्षेप में
नाम | स्वामी विवेकानंद [स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय] |
पूरा नाम (संन्यास लेने के पूर्व) | नरेंद्रनाथ दत्त |
जन्म | 12 जनवरी, 1863 |
मृत्यु | 4 जुलाई, 1902 (39 वर्ष) |
पिता का नाम | श्री विश्वनाथ दत्त (वकील) |
माता का नाम | श्रीमती भुवनेश्वरी देवी |
जन्म स्थान | गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट, कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु स्थान | बेलूर मठ, कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
गुरु/शिक्षक | श्री रामकृष्ण परमहंस |
संस्थापक | रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन (बेलूर मठ) |
साहित्यिक कार्य | राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, मेरे गुरु |
अन्य मह्त्वपूर्ण कार्य | न्यूयार्क में वेदांत सिटी की स्थापना, कैलिफोर्निया में शांति आश्रम की स्थापना |
किताब | राज योग (पुस्तक) |
चर्चित कथन | “उठो, जागो और तब तक न रुको! जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।” |
दर्शन | आधुनिक वेदांत, राजयोग। |
स्वामी विवेकानंद का जीवन आध्यात्म और ज्ञान से परिपूर्ण था। इन्होंने अपने आध्यात्मिक व वेदांत ज्ञान का प्रचार पूरे विश्व में किया था। स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। ये मूल रूप से कलकत्ता के निवासी थे।
- द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय
- काली कंबल वाले बाबा: परिचय, नम्बर, पता, इलाज़ का सच, कहां पर है? वायरल न्यूज
- तुलसीदास का जीवन परिचय एवं रचनाएं
- Read more
स्वामी विवकानंद का जीवन परिचय ~ Biography of swami Vivekananda in Hindi
Swami Vivekananda Biography – जन्म व बचपन
स्वामी विवेकनन्द जी का जन्म 1863, 12 जनवरी को कोलकाता में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती भुवनेश्वरी देवी था। इनकी माता धार्मिक विचारों वाली महिला थी उनका अत्यधिक समय शिव भक्ति पूजा आराधना में ही व्यतीत होता था। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था और उन्हें पाश्चात्य सभ्यता में बहुत अधिक विश्वास था साथ ही कलकत्ता के हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध वकील भी थे। स्वामी जी अपनी माता से हमेशा रामायण, पुराण और महाभारत की कथाएं सुना करते थे।
Swami Vivekananda Education- शिक्षा
स्वामी विवेकानंद जी के पिता जी की इच्छा थी कि उनका पुत्र पाश्चात्य सभ्यता (वेस्टर्न कल्चर) सीखे, इसके लिए वे विवेकानंद जी को बचपन से ही अंग्रेजी पढ़ाकर उन्हें पाश्चात्य सभ्यता अथवा पश्चिमी संस्कृति सीखना चाहते थे।
किन्तु स्वामी विवेकानंद जी (स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय) को ईश्वर को पाने की प्रबल इच्छा थी क्योंकि बचपन से ही उनका आध्यात्मिकता के प्रति अधिक झुकाव था। जिस कारण उनका मन पश्चात सभ्यता सीखने में मन नहीं लगता था। वैसे तो स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही तेज बुद्धि के बालक थे और अन्य साधारण बालको की तुलना में वे अद्वितीय थे। लेकिन आध्यात्मिक रुचि और परमात्मा को पाने की लालसा के कारण उनका मन कहीं और नहीं लगता था।
इसके लिए वे प्रारम्भ में ब्रह्म समाज को भी स्वीकार किया परन्तु यहां भी उनका मन व चित्त स्थिर न था और उन्हें असंतोष प्राप्त हुआ। स्वामी जी का मन था कि वे वेदांत और योग को पश्चिमी संस्कृति में प्रचलित करने में अपना योगदान दे। ऐसे ही कुछ समय बिता और एक दिन स्वामी विवेकानंद जी के पिता विश्वनाथ दत्त जी की मृत्यु 1884 में हो गई। पिता के मृत्यु के पश्चात् घर का सारा भार इनके उपर आ गया।
पिता जी के मृत्यु के समय घर की स्थिति बहुत अधिक खराब थी और उनका पूरा परिवार आर्थिक तंगी झेल रहा था इसके बावजूद नरेंद्रनाथ दत्त अतिथि की सेवा करने में आगे रहते थे। स्वयं भूखे रह कर अथिति को भोजन कराते और सोने के लिए खुद का बिस्तर दे कर स्वयं बाहर सो जाते।
ऐसे ही दिन बीत रहा था और स्वामी विवेकानंद जी को एक दिन रामकृष्ण परमहंस के बारे में ज्ञात हुआ लोग उनकी बहुत अधिक प्रशंसा कर रहे थे। ऐसे ही एक दिन नरेंद्रनाथ के मन में कुछ सवाल उठे और वे उसका जवाब जानने हेतु रामकृष्ण परमहंस जी के पास जा पहुंचे।
नरेंद्रनाथ दत्त | Swami Vivekananda का संन्यास लेना
वास्तव में नरेंद्र को परमहंस स्वामी जी से तर्क करना था किन्तु नरेंद्र को देखते ही परमहंस जी महाराज नरेंद्र को पहचान गए क्योंकि ये वही शिष्य था जिसका उन्हें कई दिनों से इंतेज़ार था। नरेंद्रनाथ जी को स्वामी रामकृष्ण परहंस जी महाराज की कृपा प्राप्त हुई और वे परमहंस जी महाराज के परम शिष्य बन गए। स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, परमहंस जी महाराज ने इनका आत्म साक्षात्कार कराया और इन्हे नया नाम दिया स्वामी विवेकानंद। इस प्रकार नरेंद्रनाथ एक सन्यासी बन गए और वे रामकृष्ण परमहंस जी के सभी शिष्यों में प्रमुख शिष्य बन गए।
अब नरेंद्रनाथ दत्त एक सन्यासी हो गए थे और सभी उन्हें स्वामी विवेकानंद से संबोधित करने लगे। स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु परमहंस जी के आध्यात्मिक ज्ञान व उनकी विचारधारा से इतना प्रभावित थे कि वे स्वयं को पूर्ण रूप से अपने प्रिय गुरु को अर्पित कर चुके थे।
स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण कहानियां..
Swami Vivekananda गुरुभक्ति से संबंधित कथा (गुरु की थूकदानी पी गए)
विवेकानंद जी अपना जीवन गुरु श्री परमहंस जी महाराज को समर्पित कर चुके थे। गुरु के शरीर त्याग के समय विवेकानंद अपने कुटुम्ब की चिंता करे बग़ैर और स्वयं के भोजन की चिंता किए बगैर गुरु की सेवा के लिए सदैव समर्पित रहते थे। गुरुदेव का शरीर आती रुग्ण हो गया था और कैंसर के कारण गले से बार बार कफ, खून और गंदगी निकलती रहती थी। जिसे विवेकानंद जी बड़े ही ध्यानपूर्वक अपने हाथ से साफ किया करते थे।
उनके ऐसा करने पर मठ के अन्य गुरुभाई घृणा करने लगे और दूर रहने लगे। जब उनको इसका आभास हुआ कि अन्य गुरूभाई गुरु जी की इस अवस्था कि देखकर घृणा कर रहे है तो उन्हें उनपर बहुत क्रोध आता है और उनको सबक सिखाने व गुरुभक्ति का पाठ पढ़ाने के लिए ग्रुरुदेव की थूकदानी को पी गए थे। स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, ऐसे महान व्यक्तित्व वाले श्रेष्ठ शिष्य थे स्वामी विवेकानंद जी महाराज। इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि उनसे अच्छी गुरु भक्ति कोई क्या कर सकता है। इनके अंदर गुरुभक्ति, गुरुदेव, गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा थी।
Swami Vivekananda– लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो!
एक बार एक व्यक्ति स्वामी विवकानन्द जी के पास आता है और कहता है कि वो कुछ भी कार्य करता है उसका फल उसे नहीं मिलता और वो बहुत मेहनत लगन से कार्य करता है फिर भी उसे जीवन में सफलता नहीं प्राप्त हो रही ऐसा क्यों? [स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय] उस व्यक्ति कि बात सुनने के बाद विवेकानंद जी बोले कि तुम मेरे इस कुत्ते को थोड़ा बाहर टहला कर लाओ तब तक मैं तुम्हारे सवाल का जवाब पता करता हूं। व्यक्ति स्वामी जी की बात मान कर कुत्ते को बाहर घूमने लेकर चला जाता है और थोड़ी देर बाद उसे वापस मठ में स्वामी जी के पास लता है।
स्वामी जी दोनों को देखते है [स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय] तो कुत्ता बहुत तेज हाफ रहा था इसका कारण पूछने पर व्यक्ति बताता है कि कुत्ता इधर उधर भाग रहा था इस लिए वो हाफ रहा है और में सीधे जा रहा था। इस पर स्वामी जी व्यक्ति को बोलते है कि तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर तुम्हे मिल गया।
और फिर बताया की व्यक्ति एक जगह अपना ध्यान नहीं लगता और वो उधर उधर भटकता रहता है जिससे उसके जीवन में सफलता नहीं मिलती। लक्ष्य पर ध्यान दो सफलता अवश्य मिलेगी।
Swami Vivekananda– नारी का सम्मान
एक बार एक महिला स्वामी जी के आप आती है और उनके समक्ष विवाह करने का प्रस्ताव रखती है और कहती है कि मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं ताकि आपके जैसा गौरवान्वित संतान की प्राप्ति हो सके।
इस स्वामी विवेकानंद जी कहते है कि मै आपसे विवाह कैसे कर सकता हूं मै तो एक सन्यासी हूं और बाल ब्रह्मचारी हूं मै आपसे विवाह नहीं कर सकता। परन्तु यदि आप मेरी माता बन जाए तो इससे मेरा सन्यास भी भंग नहीं होगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी प्राप्त हो जाएगा। स्वामी विवेकानन्द जी की यह बात सुनते ही महिला उनके चरणों में गिर गई और जोर जोर से रोते हुए कहती है कि धन्य है वो मा जिसने आपको जन्म दिया और आज मैं भी धन्य हो गई आपके श्री मुख से माता सुनकर धन्य है आप।
Swami Vivekananda world travel- विवेकानंद जी की यात्राएं
- 25 वर्ष की उम्र में विवेकानंद जी गेरुआ वस्त्र धारण करके पूरे भारत की यात्रा को पूरा किया था।
- शिकागो में (अमेरिका) विश्व धर्म परिषद समारोह में स्वामी विवेकानन्द जी को प्रतिनिधि के रूप में बुलाया गया था।
- उस समय यूरोप और अमेरिका के लोग भारत वासियों को बड़े ही हिन भाव से देखा करते थे। ऐसे में स्वामी जी को भाषण देने के लिए समय न मिले सभी ने बहुत प्रयत्न किया। किन्तु एक अमरीकन प्रोफेसर के प्रयास से थोड़ा समय मिला।
- स्वामी विवेकानंद जी का भाषण के पूर्व “मेरे भाइयों और बहनों” का वाक्य सुनकर वह पर उपस्थित सभी विद्वान और श्रोता चकित हो गए थे और उनके आदरपूर्ण भाषण से सभी बहुत प्रभावित हुए थे।
- जिसके बाद वे 3 वर्षों तक अमेरिका में रहे और वहां भारतीय वेदांत और तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान कि।
- स्वामी विवेकानंद जी के ज्ञान [स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय] और विवेक को देखते हुए अमरीकन मीडिया वाले उन्हें “साइक्लोनिक हिन्दू” नाम दिया था।
- अमेरिका में स्वामी जी ने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित की। और अनेकों अमेरिकी उनके शिष्य भी बने।
- आध्यात्म ज्ञान और भारतीय दर्शन के बिना पूरा विश्व अनाथ हो जाएगा ऐसा स्वामी जी का विश्वास था जिसके लिए वे देश विदेश की यात्रा किया करते थे और ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित किया करते थे।
- सन् 1902 में 4 जुलाई को स्वामी विवेकानंद जी का देहांत हो गया था।
स्वामी विवेकानंद का योगदान और महत्व [स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय]
मात्र उंतालिस वर्ष तक की आयु में स्वामी विवेकानंद जी ने जो कार्य कर दिखाए है उनका प्रकाश आने वाले कई शताब्दियों तक देश विदेश के युवाओं के जीवन को प्रकाशित करेगा और उनका मार्गदर्शन करेगा।
तीस वर्ष की आयु में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन में जा कर हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत और सनातन हिन्दू धर्म को एक सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। स्वामी विवेकानंद जी के इस कार्य पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मीडिया के माध्यम से एक बार कहा था कि “यदि आप भारत को जानना चाहते है तो विवेकानंद के व्यक्तित्व को पढ़िए! उस महान व्यक्तित्व में आपको सदैव सकारात्मकता ही दिखेगी, नकारात्मक कुछ भी नहीं मिलेगा।”
रोमा रोलां ने स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा था, “उनके द्वितीय होने की कल्पना करना असम्भव है। विवेकानंद जी जहां भी गए वहा सबसे आगे ही रहे। हर कोई उनमें अपने नेता का दिव्यदर्शन करता।”
वे केवल एक संत ही नहीं अपितु एक देशभक्त भी थे और एक अच्छे वक्ता, विचारक, लेखक और मानव प्रेमी थे। उनके एक कथन बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली और चर्चित रहा ” उठो, जागो, और औरो को भी जगाओ। अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाओ और तब तक मत रुको जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”
स्वामी विवेकानंद जी का शिक्षा दर्शन
स्वामी विवेकानंद जी मौलानो के मदरसों और अंग्रेजो के स्कूलों में मिल रही शिक्षा व्यवस्था का विरोध करते थे। क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ युवाओं को नौकरी करने के लिए प्रेरित करता था। जबकि स्वामी विवेकानंद ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास हो। उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालको में आत्मनिर्भर बनाकर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करना होना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद प्रचलित शिक्षा को निषेधात्मक शिक्षा व्यवस्था मानते है और शिक्षित व्यक्ति के संबंध में कहा कि “कुछ कक्षाएं और डिग्री हासिल कर लेने मात्र से व्यक्ति शिक्षित नहीं हो जाता या फिर डिग्री हासिल करने के बाद अच्छी भाषण देता है ऐसा व्यक्ति शिक्षित नहीं होता। उनके अनुसार ऐसी शिक्षा किसी काम कि नहीं जो जनसाधारण को जीवन के संघर्षों के लिए तैयार न करता हो, जो व्यक्ति के अंदर अच्छी चरित्र चित्रण का निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती ऐसी शिक्षा किसी काम कि नहीं।
स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे चरित्र का निर्माण हो, व्यक्ति का मनोबल बढ़े, बुद्धि विद्या का विकास हो, और व्यक्ति स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बनें।
स्वामी विवेकानंद जी का शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत
- शिक्षा से बालक का शारीरिक मानसिक और आत्मिक विकास हो सके।
- शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक में अच्छे चरित्र का निर्माण हो, मन व बुद्धि का विकास हो, व्यक्ति आत्मनिर्भर बने।
- शिक्षा में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
- धार्मिक शिक्षा पुस्तकों के माध्यम से नहीं बल्कि अच्छे संस्कार के द्वारा दी जानी चाहिए।
- शिक्षा गुरु के द्वारा है प्राप्त होनी चाहिए वो भी गुरु गृह में।
- शिक्षक और शिष्य का संबंध निकटतम का होना चाहिए।
- देश की आर्थिक स्थिति के लिए टेक्निकल एजुकेशन की व्यवस्था होनी चाहिए।
- मानवीय शिक्षा और राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू होनी चाहिए।
मृत्यु
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, से संबंधित कुछ सवाल~ FAQs
[स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय]