[PDF] सूरदास का जीवन परिचय ✓ Surdas Ji ka Jivan Parichay (कक्षा 10)

सूरदास का जीवन परिचय, [PDF Download] जन्म, जन्म स्थान, गुरु, भाषा शैली, दोहे, रचनाए, कृतिया, साहित्य में योगदान, [ Surdas ka jeevan parichay, Janm, Janm sthan, Guru, Bhasha shaili, Rachnayen, Kritiya, Dohe, Sahitya mein Yogdan, wikipedia hindi ]

सूरदास जी का जीवन परिचय जाने क्योकी आने वाले बोर्ड की परीक्षाओं और कई प्रतियोगी परीक्षाओं में Surdas ka jivan parichay से संबंधित कई प्रश्न पूछे जाते है जिस कारण सूरदास की जीवनी के बारे में जानना महत्वपूर्ण हो जाता हैं। अगर परीक्षाओं की बात ना करे तो उसके बाद भी सूरदास जी के जीवन परिचय के बारे में हम सभी को जानकारी होना अतिआवश्यक है क्योंकि सूरदास जी द्वारा हिंदी साहित्य में और कृष्ण भक्ति में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 

मेरे प्रिय पाठकों, मैंने आप की आवश्यकताओं और छात्रों को ध्यान में रखते हुए इस लेख (Surdas ka jivan parichay) को पूर्ण रूप से और बड़ी मेहनत से एक एक जानकारी को कई स्रोतों के माध्यम से एकत्रित करके लिखा है। जिससे हमारे वेबसाइट पर आए हुए पाठकों को सही और उचित जानकारी प्राप्त हो सके। 

आइए सूरदास के जीवन परिचय को पढ़ते है लेकिन उससे पहले हमने सूरदास जी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी को संक्षिप्त में नीचे तालिका के माध्यम से साझा किया उसको भी जान ले

Contents hide

सूरदास का जीवन परिचय संक्षिप्त में (Surdas ka jivan parichay in hindi)

लेख (Article)सूरदास जी का जीवन परिचय ( Surdas ka jivan parichay)
नामसूरदास
पूरा नाम/असली नामसूरदास मदन मोहन
जन्मसन् 1478 ई. 
जन्म स्थानरुनकता अथवा सीही (मथुरा – आगरा मार्ग)
मृत्युसन् 1583 ई.
मृत्यु स्थानगोवर्धन के निकट परसौली ग्राम 
पितारामदास, प्रसिद्ध गायक।
माताजमुनादास
वैवाहिक स्थितिअज्ञात
गुरुमहाप्रभु वल्लभाचार्य जी से शिक्षा दीक्षा ली
भाषा शैलीब्रजभाषा
दोहेयहां देखे
प्रमुख रचनाएंसूरसागरसुरसरवलीसाहित्य लहरी
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay | surdas ke dohe

सूरदास जी का बाल्यावस्था व परिवार

सूरदास का जन्म 1478 ई. में मथुरा आगरा मार्ग के किनारे स्थित रूनकता नामक ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म सींही नामक ग्राम में एक ब्राह्मण दम्पत्ति के यहां हुआ था। सूरदास जी के पिता जी का नाम रामदास बैरागी था जो बहुत ही प्रसिद्ध गायक थे। सूरदास जी की माता जी का नाम देवी जमुनादास था। 

ऐसा कहा जाता है कि सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे परन्तु इनके जन्मांध पर भी कई कवि और विद्वान प्रश्न उठाते है क्योंकि सूरदास जी के द्वारा रचित रचनाओं में जिस प्रकार से श्री कृष्ण के प्रति सखा भाव दिखाई देता है वो अत्यंत अद्भुत है। एक एक शब्द साक्षात् प्रभु के प्रति इस प्रकार से सुसज्जित ही की हर कोई उन्हें पढ़ने के बाद कुछ ऐसा ही कहेगा।

प्रारम्भ में सूरदास जी आगरा के निकट गऊघाट पर अपने माता पिता के साथ निवास करते थे जहा पर सूरदास की मुलाकात अर्थात् भेंट श्री वल्लभाचार्य जी से हुई और सूरदास जी उनसे बहुत प्रभावित हुए तथा उनको अपना गुरु बना लिया। 

सूरदास जी अपने गुरु जी से शिक्षा दीक्षा संस्कार लेकर उनके आदेश पर कृष्णलीला गीत गाने लगे। एक दिन गोवर्धन के निकट परसौली ग्राम में उनकी मृत्यु हो गई। इनका देहांत सन् 1583 ई. में हुआ था।

सूरदास जी का विवाह

सूरदास जी के विवाह के सम्बन्ध में कोई भी जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है। किन्तु कुछ वेबसाइट पर इनकी पत्नी का नाम रत्नावली बताया गया है, जो कि मेरे व्यक्तिगत जानकारी के अनुसार यह गलत हो सकता है। क्योंकि जिसको ये सभी सूरदास की पत्नी बता रहे है वास्तव में वह रत्नावली तुलसीदास जी की पत्नी का नाम है। जिनके बारे में हमने अगल से एक लेख (तुलसीदास का जीवन परिचय) तैयार करके रखा है आप चाहे तो वहां जाकर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 

अतः अभी आप यह मानकर चलें कि सूरदास जी की कोई पत्नी नहीं थी क्योंकि वे जन्म से ही अंधे थे जिसके कारण उनका विवाह नहीं हुआ था। सूरदास जी के विवाह को लेकर विद्वानों में अभी भी मतभेद है।

👉 सूरदास जी के विवाह के संबंध में आपकी क्या राय है हमें कॉमेंट के माध्यम से जरूर बताए।🙏

सूरदास जी की शिक्षा व गुरु

सूरदास जी का जन्म मथुरा आगरा मार्ग के किनारे स्थित गांव सीहीं में हुआ था। जिसके कुछ वर्षों के पश्चात् वे आगरा के समीप गऊघाट पर रहने लगे जहा उनकी मुलाकात महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी से हुई। 

जिसके बाद सूरदास जी श्री वल्लभाचार्य जी के शिष्य बन गए और उनसे अपनी पूरी शिक्षा दीक्षा ली। श्री वल्लभाचार्य जी ने सूरदास जी को पुष्टिमार्ग में दीक्षा दी और उनको भगवान श्री कृष्ण जी के लीला पद गाने का आदेश दिया। इस प्रकार सूरदास जी कृष्ण लीला पद गाते हुए गोवर्धन के निकट परसौली ग्राम में इनकी मृत्यु सन् 1583 ई. में हो गई थी। 

सूरदास जी का साहित्यिक जीवन परिचय (साहित्यिक योगदान)

सूरदास जी के साहित्यिक जीवन परिचय के अन्तर्गत हम उनके द्वारा रचित ग्रंथो, रचनाओं के बारे में जानेंगे। सूरदास जी के कुल पाच ग्रंथ बताए जाते है जो सूरदास जी द्वारा रचित था वे इस प्रकार है – सूरसागर, सुरसारावली, साहित्य लहरी, नल दमयंती, ब्याहलों आदि। 

नागरी प्रचारिणी सभा के माध्यम से प्रकाशित हस्तलिखित पत्रिका के अनुसार सूरदास जी के द्वारा लिखित कुल 16 ग्रंथ है जिनमें से उपरोक्त पांच को छोड़ कर शेष के ग्यारह ग्रंथ कुछ इस प्रकार है, दशम स्कंध, टीका, नागलीला, भागवत, गोवर्धन लीला, सुरपचिसी, सूरसागर सार तथा प्राण प्यारी आदि। सभी ग्रंथों में से तीन को महत्वपूर्ण समझा जाता है।

  • सूरसागर, इसमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का गान है।
  • सुरसारावाली, में सूरदास जी ने कृष्ण के विषय कथ्यात्मक व सेवा पदों का गान रूपी वर्णन किया है।
  • साहित्य लहरी, में सूरदास जी ने स्वयं को दर्शाते हुए सुर के दृष्टकोण पदों को संकलित किया है।

सूरदास जी की भाषा शैली

सूरदास जी ने अपने संपूर्ण ग्रंथो की रचनाएं हिन्दी साहित्य की ब्रजभाषा में की थी। जिसके अनुसार इनकी भाषा शैली “साहित्यिक ब्रजभाषा” होती है। इन्होंने अपने समस्त रचनाओं में संस्कृति का भी प्रयोग किया है। जिसमें तत्सम शब्दों के साथ देशज व तद्भव शब्दों के कुछ अंशों का प्रयोग किया है।

सूरदास जी की प्रमुख कृतियां / रचनाएं

विद्वानों के अनुसार, सूरदास जी द्वारा रचित कुल पांच ग्रंथ है, 

  1. सूरसागर
  2. सुरसारावली
  3. साहित्य लहरी 
  4. नल दमयंती
  5. ब्याहलो आदि

उपरोक्त पांचों ग्रंथो में मात्र तीन ग्रंथ ही प्रमुख है जिनका हमने थोड़ा सा वर्णन कर दिया है

  • सूरसागर: सूरदास की सभी रचनाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध रचना सूरसागर है। जिसमें कुल सवा लाख पद उल्लेखित थे किन्तु अभी सिर्फ 7-8 हजार पद ही मिलते हैं।
    • सूरसागर ब्रजभाषा में रचित ग्रंथ है।
    • इसमें कीर्तन पदों का सुंदर संकलन देखने को मिलता है।
    • इसके प्रथम के नौ अध्याय संक्षेप में है और दशम स्कंध का विस्तार हो गया है।
    • सूरसागर में भक्ति की प्रधानता दिखाई देती है।
    • सूरसागर में दो महत्वपूर्ण प्रसंग है पहला, “श्री कृष्ण की बाल लीला” और दूसरा “भ्रमर गीतसार”।
    • इसकी सौ से भी अधिक प्रतिलिपियां कई स्थानों पर पाई गई जिनमें से अत्यधिक प्राचीनतम प्रतिलिपि “मेवाड़ के नाथद्वार” के “सरस्वती भंडारण” में पाई गई थी।
  • सुरसरावली: सुरसरावलि सूरदास जी द्वारा रचित द्वितीय प्रसिद्ध रचना है। सूरदास जी ने सन् 1602 ई. में इसकी रचना की थी। उस समय सूरदास जी 67 वर्ष के हुए थे। यह संपूर्ण ग्रंथ वृहद होली गीत पर रचित है। जिसमें कुल 1107 छंद है।

    खेलत यह विधि हरि होरी हो।
    हरि होरी हो वेद विदित यह बात।।
  • साहित्य लहरी: सुरदास जी के साहित्य लहरी की बात करे तो इसमें मात्र 118 पद ही है। जिसके अंतिम पद में सूरदास जी का वंशवृक्ष उपलब्ध है। जिसके अनुसार सूरदास जी को “सुरजदास” कहा गया है। इसकी रचना सूरदास जी ने 1607 ई. में की थी।

सूरदास के दोहे

सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay  | surdas ke dohe
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay | surdas ke dohe
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay  | surdas ke dohe
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay | surdas ke dohe
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay  | surdas ke dohe
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay | surdas ke dohe
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay  | surdas ke dohe
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka jivan parichay | surdas ke dohe

सूरदास जी के काव्य की विशेषताएं [ surdas ji ke kavya ki visheshtayen ]

सूरदास जी को श्रृंगार रस, वात्सल्य रस और शांत रस का अद्वितीय कवि माना गया है। सूरदास जी को अष्ट क्षाप कवि भी कहा जाता है। क्योंकि इनके द्वारा रचित रचनाओं में सजीवता स्पष्ट रूप से झलकती है। 

सूरदास जी के भक्ति का भाव | सूरदास का जीवन परिचय ( Surdas ka jivan parichay )

सूरदास जी के काव्य की कई विशेषताएं ही जिनमें से हम सूरदास जी के काव्य का भाव पक्ष को जान लेते है जो निम्न है,

  • श्रृंगार वर्णन
  • वात्सल्य चित्रण
  • भक्ति भावना
  • दर्शिनिक्ता
  • प्रकृति चित्रण
  • भावुकता एवम् वाग्वैदग्ध्यता
  •  अलौकिकता एवं मौलिकता

सूरदास जी से जुड़े फैक्ट्स

सम्बंधित लेख:

FAQs (सूरदास का जीवन परिचय से संबंधित प्रश्न)

सूरदास का जीवन परिचय कैसे लिखे?

सूरदास का जीवन परिचय ( Surdas ka jivan parichay ) कैसे लिखे के संदर्भ में ऊपर मैंने समस्त जानकारी देदी है। अतः आप पूरे लेख को पुनः पढ़े और मुख्य heading के साथ surdas ji ka jivan parichay लिखे।

यह लेख मैंने कक्षा 10 के विद्यार्थियों को ध्यान में रखते हुए लिखा है| साथ ही 12 वीं कक्षा के भी विद्यार्थी भी सूरदास का जीवन परिचय ( Surdas ka jivan parichay ) को लिख सके उनको भी ध्यान में रख कर लिखा गया है।

सूरदास जी का जन्म कब हुआ था?

सूरदास जी का जन्म 1478 ई. में मथुरा आगरा मार्ग में स्थित रुनकता अथवा सीहि में हुआ था। वैसे सूरदास जी के जन्म और जन्म स्थान को लेकर कई बातें है जिनपर विद्वान सहमत नहीं है। अतः इसी स्थान और सन् को उचित माना गया है अध्ययन के हिसाब से।

सूरदास जी ने कितनी रचनाएं लिखी हैं?

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के अनुसार सूरदास जी ने कुल 27 रचनाएं लिखी थी।

सूरदास जी के प्रमुख रचनाओं के नाम क्या हैं?

वैसे तो सूरदास जी ने अपने जीवन काल में कुल 27 रचनाएं की थी जिनमें से 3 रचनाएं मुख्य थे जो इस प्रकार हैं
सूरसागर
सुरसरावली
साहित्य लहरी

सूरदास जी का दूसरा नाम क्या है?

सूरदास जी का दूसरा नाम मदन मोहन है।

सूरदास जी का पूरा नाम क्या है?

सूरदास जी का पूरा नाम ‘ सूरदास मदन मोहन ‘ था।

सूरदास जी की भाषा शैली क्या है?

सूरदास जी की हिंदी साहित्य में ब्रजभाषा शैली मानी जाती है।

सूरदास जी ने कुल कितने पद लिखे हैं?

सूरदास के कुल सवा लाख पद बताए जाते है जिनमें से सिर्फ सात आठ हज़ार पद ही वर्तमान समय में उपलब्ध हैं।

सूरसागर में कुल कितने स्कंध है?

सूरसागर में कुल दशम स्कंध है।

सूरदास जी के गुरु का क्या नाम है?

सूरदास जी की के गुरु जी अथवा शिक्षक का नाम आचार्य श्री वल्लभाचार्य था। जिनसे सूरदास जी ने अपनी शिक्षा दीक्षा ली। बाद में महाप्रभु वल्लभाचार्य जी के आदेशानुसार सूरदास जी कृष्णलीला की गाथा गाने लगे। सूरदास जी की अपने गुरु वल्लभाचार्य जी से प्रथम बार मुलाकात मथुरा के गऊघाट में हुई थी वहीं पर इन्होंने इनसे शिक्षा प्राप्त की।

सूरदास के भक्ति का भाव क्या है?

सूरदास जी के भक्ति का भाव उनके पदों और रचनाओं में देखने को मिलता है जो भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्त के सखा भाव को दर्शाता है। अतः इनके भक्ति का भाव साख्य भाव है।

Leave a Comment