Short Tenali Raman Stories in Hindi with Moral: हमारा भारत हमेशा से ही महान और बुद्धिमान ब्यक्तियो का देश रहा है, हम सभी कही न कही या किसी बड़े बुजुर्ग से ये सुनते और पड़ते आए है की हमारे देश में बहुत विद्वान और महान पराक्रमी व बुद्धिमान व्यक्ति हुआ करते थे जो अपने महानतम बुधियार पराक्रम से सभी को चौंका कर रख देते थे और यह सोचने को मजबूर कर देते थे की ऐसा भी कोई व्यक्ति धरती पर है जो अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई से सभी को पीछे कर सकता है। इतना ही नही आज भी लोग उन महान बुद्धिमान ब्यक्तियो को याद करते है और उनकी बुद्धि का लोहा मानते है।
इन महान व्यक्तियो की चतुराई, ब्यक्तित और उनके जीवन से जुड़ी कई कहानियां और किस्से है जो हमेशा से हर किसी को अच्छी सीख और उनको रोमांचित करने के साथ साथ उनके जीवन को भी प्रभावित भी करती है। भारत देश का इतिहास ऐसे ही कई महान ब्यक्तियो की कहानियों व किस्से से भरी पड़ी है और लोग उनकी कहानियों को आज भी सुनना और पड़ना पसंद करते है।
ऐसे ही कुछ महान व बुद्धिमान लोगो की सूची में आते है, तेनाली रामा (short tenali raman stories in hindi)। बचपन में हर किसी ने कभी न कभी किसी से इनके बारे में सुना होगा या किसी किताब में पढ़ा होगा या फिर किसी tv सीरियल या कार्टून के माध्यम से इनकी कहानी देखा होगा। तेनाली रामा का दूसरा नाम तेनाली रामाकृष्ण था, स्कूल के किताबो मे इनकी कहानियों को पढ़ाया जाता है क्योंकि इनकी कहानी बहुत ही प्रेरणादायक होती है जो बच्चो को प्रेरणा देती है।

तेनालीराम की कहानियाँ: Short Tenali Raman Stories in Hindi
तेनालीराम एक कवि तो थे ही साथ ही साथ वो बहुत ही चतुर और बुद्धिमान भी थे। तेनालीराम ने अपने जीवन में बहुत सी कविताएं लिखी साथ ही अपनी बुद्धि और हास्य व्यक्तित्व के लिए भी लोकप्रिय थे जिससे इनकी चतुराई और हास्य कथाओं की चर्चा दूर दूर तक फैली हुई थी।
तेनालीराम, विजय नगर के राजा कृष्णदेव के बहुत ही प्रिय और उनके करीबी मंत्री थे। जिसका बस एक कारण था उनकी समझदारी व सूझ बुझ, जो राजा कृष्णदेव की सभी समस्याओं को बस कुछ ही पल में दूर कर देते थे और राज्य पर आने वाली किसी भी प्रकार की विपत्ति व समस्या को दूर करने के लिए सर्वप्रथम तेनालीराम से ही सलाह ली जाती थी।
आज हम आपको तेनालीराम की कहानी (Short Tenali Raman Stories in Hindi) और उनसे जुड़े किस्से के बारे में इस लेख के माध्यम से बताएंगे, तो अपने उत्साह को बनाए रखे और लेख को पूरा पढ़े।
तेनालीराम की कहानियां (short tenali raman stories in hindi) और किस्से जितना उनके समय में प्रसिद्ध नही थी उससे कही ज्यादा अब के समय में प्रसिद्ध हो चुकी है। आज के समय में हर कोई चाहे वो एक छोटा बच्चा हो या फिर कोई नौजवान या बूढ़ा व्यक्ति हर कोई तेनालीराम की कहानियां (short tenali raman stories in hindi) पढ़ना, सुनना और देखना चाहता है।
अगर आप तेनालीराम के बारे में और अधिक जानना चाहते है आप about tenali ramakrishna in hindi यहां पढ़ सकते हैं।
Tenali Ramakrishna biography | तेनाली राम का जीवन परिचय ,कहानियां 2023
तेनाली राम का जीवन परिचय | short tenali raman stories in hindi | Tenali Ramakrishna biography In Hindi
दोस्तो बचपन में आप सभी ने बहुत सी कहानियां सुनी और पढ़ी होंगी जो किसी महान व्यक्ति के बारे में उसकी बुद्धिमत्ता और चुतुराई से संबंधित होगी। ऐसे ही एक व्यक्ति थे जिनके बौद्धिक कौशल व चतुराई भारी सूझ बुझ की कई कहानियां आपने कही न कही किसी से सुनी होंगी। वो व्यक्ति कोई और नही तेनाली रामाकृष्णन थे जिनके बारे में भारत के कई स्कूलों के किताबो में भी जिक्र है ये चतुर व बुद्धिमान तो थे ही साथ ही साथ वो एक कवि भी थे।
तेनाली रामकृष्ण का साहित्यिक जीवन:
Tenali Ramakrishna को लोग विकटकवि (विदूषक), चार वेद प्रांगत तत्ववेत्त, राज सलाहकार के रूप मे भी जानते थे।
तेनाली रामाकृष्णा अपने बुद्धि और हास्य के लिए प्रसिद्ध हुए। उनके जीवन से जुड़ी कई कहानियां है ( short tenali raman stories in hindi ) जिसे लोग बहुत ही प्यार से पढ़ते है।
तेनाली रामकृष्ण की जीवनी:

विद्वानों की यह मान्यता है कि, तेनालीराम का जन्म 16वी शताब्दी में थूमुरुलू नामक गांव जो आंध्रप्रदेश राज्य के एक छोटे से नगर गुंटूर में हुआ था। इनका पूरा नाम तेनालीराम लिंगाचार्युलू था। कुछ विद्वानों की यह मान्यता है कि इनका जन्म आंध्रप्रदेश के तेनाली नामक गांव में हुआ था इस लिए इन्हे तेनाली रामकृष्ण भी कहा जाता है।
तेनाली रामकृष्ण का प्रारंभिक जीवन
इनके जन्म स्थान के संबंध में कई विद्वानों में सदैव से मतभेद रहा है। ये एक तेलगु ब्राह्मण परिवार में जन्में थे इनकी माता का नाम ‘लक्षम्मआ’ था और पिता का नाम ‘गरालपति रमैया’ था। इनके पिता जी तेनाली नगर के रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर में एक पुरोहित थे। बाल्यावस्था में ही तेनालीराम के पिता जी का स्वर्गवास हो जाने के कारण इनके सर से पिता का शाया हट गया और ये अपनी माता लक्षम्मआ के साथ तेनाली नगर अपने मामा के घर आ गए।
Tenali Ramakrishna short biography details in hindi
नाम | तेनाली रामकृष्ण |
उपनाम | विकट कवि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जन्म तिथि | 22 सितंबर 1479 |
जन्म स्थान | गुंटूर जिला, आंध्रप्रदेश |
पिता का नाम | गरालपति रामैया |
माता का नाम | लक्षम्मा |
पेशा | कवि |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी का नाम | शारधा देवी |
पुत्र | भास्कर शर्मा |
मृत्यु | 5 अगस्त 1575 |
प्रसिद्ध कहानियां | रामलिंग और रायलू |
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तेनाली रामकृष्ण की शिक्षा:
हालांकि Tenali Ramakrishna के पिता मंदिर में पुरोहित तो थे ही साथ में वो एक बहुत बड़े ज्योतिष भी थे, और उन्होंने तेनालीराम की भविष्यवाणी बचपन में ही कर दी थी की तेनालीराम भले ही रचनात्मक व बौद्धिक कौशल से परिपूर्ण है किंतु इनकी शिक्षा अधूरी ही रहेगी, लेकिन फिर भी ये अपने प्रकांड विद्वान होंगे और अपनी चतुराई तथा बुद्धिमानी से सभी को अपनी ओर आकर्षित करेंगे और ऐसा होता भी है।
तेनालीराम अपने मामा के घर पर ही पढ़े बड़े और उनकी बुद्धि और चतुराई व उनकी रचनात्मकता के कारण लोग उनको तेनाली रामकृष्ण के नाम से बुलाने लगे।
बाल्यावस्था में इनकी शिक्षा दीक्षा औपचारिक ढंग से नहीं हुई किंतु इनके अंदर ज्ञान की सुधा होने के कारण आगे चलकर प्रकांड विद्वान बने।
तेनालीराम को मिला मां काली का वरदान:
एक लोक कथा के अनुसार तेनाली रामकृष्ण शिव भक्त थे जिसके कारण एक वैष्णव विद्वान उनको अपना शिष्य बनाने से बार बार मना करता रहा जिससे तेनालीराम बहुत दुखी होकर नदी के किनारे बैठ कर विलाप कर रहे थे तभी वहां पर उन्हें एक मुनि दिखाई दिए जिन्होंने उनको मां काली की पूरा आराधना करने को कहा, जिसके बाद से तेनालीराम प्रतिदिन मां काली की पूजा आराधना करने लगे और एक दिन मां काली उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उनको साक्षात् दर्शन देती है और साथ ही उनको दो कटोरी देती है उन कटोरियों में दूध और दही था।
पहली कटोरी जो दूध की थी वो धन के लिए था और दूसरी कटोरी जिसमें दही था वो बुद्धिमानी के लिए था। देवी ने उनको एक कटोरी लेने को कहा जिसके लिए उन्होंने दही वाली कटोरी को चुना जो बुद्धिमानी के लिए था। ऐसे में मां काली, तेनालीराम के इस चुनाव से बेहद प्रसन्न होती है और उन्हें दोनो कटोरी दे देती है। जिसके बाद से तेनालीराम हमेशा से धनी और बुद्धि कौशल से धनवान और बुद्धिमान बना रहा।
Tenali Ramakrishna ने हिंदू धर्म से संबंधित कई रचनाएं और काव्य लिखी है। ये मूल रूप से शैव थे और रामलिंगा के नाम से जाने जाते थे परंतु वैष्णव धर्म लेने के पश्चात अपना नाम रामलिंगा से बदल कर रामाकृष्णा रख लिया, और चूंकि ये तेनाली नामक नगर से थे तो इनको तेनाली रामाकृष्णा कहा जाने लगा।
तेनालीराम की पत्नी, पुत्र और परम मित्र:
तेनालीरामा की पत्नी का नाम शारदा और पुत्र का नाम भास्कर शर्मा था। इनका एक परम मित्र था जिसका नाम गुंडप्पा था।
भागवत मेला मंडल से जुड़ाव:
बचपन से ही Tenali Ramakrishna को अलग अलग लोगो से मिलना और अपनी हास्य काव्य सभी का मनोरंजन करना उनको बहुत प्रिय था। वे कही न कही अपना हास्य काव्य मंच लगाकर लोगो का मनोरंजन किया करते थे। ऐसे ही उन्होंने अपना जुड़ाव भागवत मेला मंडल से किया और अपने कला का प्रदर्शन मंडल के माध्यम से करने लगे।
तेनालीराम और राजा कृष्णदेव राय से पहली मुलाकात:
ऐसे ही कार्यक्रम का प्रदर्शन करते करते भागवत मेला मंडल, विजयनगर राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुंचा और अपना कार्यक्रम प्रदर्शित किया। जिसमे तेनालीराम ने अपना बहुत ही अच्छा और प्रभावशाली प्रदर्शन दिखाया।
राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम के अद्भुत और अद्वितीय प्रदर्शन को देखकर बहुत प्रभावित होते है और उनको अपनी सभा में अस्टदिग्गजो में सामिल होने व राजदरबार में हास्य कवि व राज सलाहकार के पद को स्वीकार करने का प्रस्ताव रखते है। तेनालीराम भी खुशी खुशी राजा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते है। राज दरबार के आठवें स्कालर अर्थात अस्टदिग्गज मंडल में हास्य कवि और राज सलाहकार के पद पर विराजमान हो जाते है।
तेनाली रामकृष्ण और राजा कृष्णदेव की जोड़ी:
विजयनगर की राजगद्दी पर महाराजा कृष्णदेव राय सन् 1909-1929 तक विराजमान थे और इस बीच Tenali Ramakrishna उनके साथ उनके दरबार में बतौर हास्य कवि के पद पर और सहायक मंत्री के रूप में उपस्थित थे। इतिहासकारों के अनुसार तेनालीराम हास्य कवि तो थे ही लेकिन साथ ही साथ चतुर भी थे। इनकी इसी चतुराई को देखते हुए राजा कृष्णदेव राय उनको राज सलाहकार भी घोषित कर चुके थे।
विजयनगर पर कई बार समस्याएं आई और उन सभी का निवारण करने के लिए राजा, तेनालीराम की ही सलाह लेते थे। एक बार विजयनगर पर सुलतानों द्वारा आक्रमण कर दिया गया था और इस विकट की घड़ी में तेनालीराम की चतुराई ने ही विजयनगर की सेना को विजयी बनाया।
इसी तरह तेनालीराम के जीवन से जुड़ी ढेर सारी कहानियां है Short Tenali Raman Stories in Hindi जिनमें उनके बुद्धि, चातुर्य, और ज्ञान बोध की झलक दिख जाती है। हो सकता है कुछ लोग तेनालीराम के जीवन से जुड़े इन कथा कहानियों को मिथ्या कह दे लेकिन उनके गुणों को पर संदेह नही किया जा सकता।
तेनाली रामकृष्ण से जुड़े कुछ रोचक तथ्य:
- Tenali Ramakrishna के बचपन का नाम गरलापति रामाकृष्ण था, ये जिस नगर में रहते थे उसका नाम तेनाली था। इस लिए लोग इन्हें तेनाली रामकृष्ण कहने लगे।
- तेनालीराम शैव थे अर्थात् शिव की आराधना किया करते थे जिसकी वजह से एक वैष्णव विद्वान ने उनको दीक्षा देने से मना कर दिया था जिसके बाद वो मां काली की आराधना करने लगे और ज्ञान वरदान अर्जित किया।
- तेनाली रामकृष्ण एक तेलगु कवि थे और उनके द्वारा लिखी गई पांडुरंग महात्म्यं काव्य तेलगु साहित्य में उच्च स्थान दिया गया है इस काव्य को तेलगु भाषा के पांच महाकाव्यों में गिना जाता है।
- Tenali Ramakrishna को विकटकवि उनके द्वारा लिखी गई तेलगु काव्य पांडुरंग महात्म्यं के कारण कहा जाता है।
- तेनालीराम केवल कहानी काव्य ही नही लिखते थे अपितु इन्होंने अपनी चतुराई से विजयनगर को आक्रमण से भी बचाया था।
- इतना ही नही ये अपने जीवन कभी भी औपचारिक शिक्षा नही प्राप्त कर पायेंगे ऐसा इनके पिता ने इनके बचपन में ही भविष्य वाणी कर दी थी।
- इतिहासकारो का मानना है की Tenali Ramakrishna ने मां काली को प्रसन्न किया और वरदान प्राप्त किए थे जिसके वजह से ये सदैव बौद्धिक कौशल तथा धन संपदा से परिपूर्ण रहे।
तेनाली रामकृष्ण पर बनी फिल्में और धारावाहिक:
तेनाली रामकृष्ण की मृत्यु:
तेनाली रामा के प्रसिद्ध किस्से:
हमने कहानियों के इस संग्रह में तेनालीराम की मजेदार कहानियां short tenali raman stories in hindi के नाम से एक लिस्ट बनाई है जिसमें तेनालीराम से जुड़ी कहानी और किस्से है जो प्रमाण है उनकी बौद्धिक कौशल और चतुराई की, जिसे पढ़ कर आप भी अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान चुटकी में निकल सकते है और भीड़ से हट कर एक अलग ब्यक्तिव का निमार्ण कर सकते है जो आप चाहते है। तो दोस्तो तेनालीराम की कहानियों (short tenali raman stories in hindi) के इस संग्रह को जरूर पढ़े और अपने बच्चो को भी सुनाए और उनको अच्छी सीख और बौद्धिक कौशल प्रदान करे।
तेनालीराम की कहानियां – Tenali ramakrishna moral stories in hindi wikipedia
तेनालीराम की कहानियां (short tenali raman stories in hindi) प्रेरणादायक और हास्य वाचक होती है जो बच्चो को उनके मानसिक विकास को बड़ाने और अच्छी सीख मिले उसके लिए बहुत ही अच्छा है। क्योंकि तेनालीराम की कहानियां किस्से और चुटकुले पढ़ने और सुनने से लोगो को मनोरंजन और प्रेरणा तो देती है पर साथ ही साथ हसी मजाक में बहुत बड़ी सीख भी दे जाती हैं। इसी तरह तेनालीराम के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक कहानियां Short Tenali Raman Stories in Hindi हम आपको बताने जा रहे है।
तेनालीराम की कहानियां | Short Tenali Raman stories in hindi
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1. Tenali Raman Stories in Hindi – तेनालीराम का न्याय

बहुत सालों पहले राजा कृष्णदेव राय दक्षिण भारत में स्थित विजयनगर राज्य में राज किया करते थे। कृष्णदेव राय के साम्राज्य में उनकी प्रजा बहुत प्रसन्नता से रहा करती थी। अक्सर सम्राट कृष्णदेव राय अपनी प्रजा के हित में फैसला लेने के लिए तेनालीराम से सलाह लिया करते थे क्योंकि वो ही थे जो पूरे विजयनगर में सबसे अधिक बुद्धिमान थे। तेनालीराम का दिमाग इतना तेज था कि वो हर प्रकार के मुसीबत का पलभर में समाधान निकाल लेते थे।
एक दिन की बात है राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक व्यक्ति रोते हुए आया। उसने कहा, “महाराज! मेरा नाम नामदेव है और मैं पास की ही हवेली में मजदूरी करता हूं। मेरे मालिक ने मुझे धोखा दिया है, मुझे न्याय चाहिए।” राजा कृष्णदेव ने उस व्यक्ति से पूछा कि आखिर ऐसा क्या हुआ है तुम्हारे साथ जो तुम इतना परेशान हो।
नामदेव ने राजा को बताया कि चार दिन पहले मैं अपने मालिक के साथ हवेली से पास के ही शिव जी के मंदिर गया था। तभी बहुत तेज आंधी और तूफान आ गई। हम दोनों मंदिर के ही पीछे के हिस्से में कुछ देर के लिए रूकने का विचार करते है और वह रुक जाते है। तभी मेरी नजर वहां पास पड़ी एक मखमली लाल रंग के कपड़े पर पड़ी। मैंने अपने मालिक से इजाजत लेकर उसे वहां से उठा लाया। जब मैंने उस लाल रंग के कपड़े को पास से देखा तो वो एक छोटी सी पोटली थी, जिसके अंदर दो हीरे थे। मैं आश्चर्यचकित हो गया और पोटली को राजकोष में जमा करने की सोचने लगा।
महाराज, वो हीरे की पोटली मंदिर के पीछे वाले हिस्से में गिरा हुआ था, और इस कायदे से वो विजयनगर की संपत्ति थी। लेकिन, मेरे मालिक की नियत हीरे देखते ही खराब हो गई थी। जिसके बाद मालिक ने मुझसे किसी को कुछ न बताने को कहा और ये भी कहा की अगर तुम किसी को नहीं बताओगे, तो आपस में हम दोनों आपस मे एक-एक हीरा बांट लेंगे। मेरे मन में भी लालच उत्पन्न हो गया था, इसलिए मैंने भी मालिक की बात मन ली। हवेली पहुंच कर मैंने जब मालिक से अपना हीरा मांगा, तो उन्होंने देने से मना कर दिया। मैंने सोच रखा था कि हीरा मिलते ही उसे बेचकर मैं नौकरी छोड़कर खुद का कोई छोटा सा काम शुरू करूंगा, लेकिन मालिक का रवैया मेरे प्रति अच्छा नहीं था। आगे नामदेव ने महाराज से दुखी आवाज में कहा कि मैंने तीन दिनों तक मालिक को मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे हीरा देने से साफ साफ मना कर दिया है। अब आप ही मेरे साथ न्याय कीजिए और इस मुसीबत से छुटकारा दिलाइए।
नामदेव की बातें सुनते ही राजा कृष्णदेव राय ने तुरंत अपने सैनिकों को भेजकर उसके मालिक को अपने दरबार बुलाया।उसके आते ही महाराज कृष्णदेव ने हीरे के बारे में पूछताछ शुरू की। पूछताछ में उनसे कहा कि नामदेव झूठ बोल रहा है। हां, ये जरूर सच है कि उस दिन हमें मंदिर के पीछे के हिस्से में हीरे की पोटली मिली थी और मैंने वो हीरे की पोटली को राजकोष तक पहुंचाने के लिए नामदेव से कहा था। फिर तीन दिन बाद जब मैंने इससे हीरे जमा करने की रसीद मांगी, तो इसने देने से मना कर दी और उल्टा मुझसे बहेश करने लगा और हम दोनो की झड़प भी हुई जिसके बाद ये आपके पास आ गया। Eane अब तक आपको जो कुछ भी बताया है वो बिल्कुल झूठ है।
नामदेव के मालिक के बयान को सुनने के बाद महाराज ने पूछा की आपने किसके सामने नामदेव को हीरे की पोटली दी थी नामदेव के मालिक ने कहा, “ महाराज मैं जब नामदेव को पोटली दे रहा था उस वक्त मेरे तीन नौकर वहां मौजूद थे जिन्होंने मुझे हीरे की पोटली नामदेव को देते हुए देखा था।”
यह जानते ही राजा कृष्णदेव ने उन तीनों नौकरों को राज दरबार में बुलवाया। तीनों नौकरों ने दरबार में पहुंचते ही नामदेव के खिलाफ गवाही दिया और बताया कि उनके मालिक ने नामदेव को जब हीरे की पोटली दी थी वो सभी वहां पर उपस्थित थे।
उन तीनो का बयान सुनने के बाद महाराज अपने दरबार में उपस्थित अन्य मंत्रियों के साथ सलाह मशवरा करने लगे। जिसमें राजा ने उनसे कहा की मुझे नामदेव सच्चा लग रहा है लेकिन गवाह उसके विरुद्ध है तो दोषी का पता लगाने में दिक्कत आ रही थी की कोन सच्चा है और कोन झूठा।
इस पर महाराजा को तेनालीराम पर नजर पड़ी और वे उनसे इशारे में ही पूछ बैठे की “बताओ तेनाली तुम्हारे हिसाब से कौन दोषी है?” मुस्कुराते हुए तेनालीराम ने महाराजा से आग्रह किया की महाराज अगर आप आदेश दे तो मैं सच और झूठ का परदा फाश कर देता हु। बस आप सभी लोगों को कुछ देर पर्दे के पीछे जाकर बैठना होगा।
राजा और अन्य सभी मंत्रियों ने तेनालीराम की बात सुनते ही ठीक वैसा ही किया और सभी परदे के पीछे जा कर बैठ गए। अब तेनालीराम ने पहले गवाह को बुलवाया और हीरे के बारे में पूछा तो उसने फिर वही पुराना जवाब दिया। फिर तेनालीराम ने उससे पूछा कि ये बताओ वो हीरे दिखते कैसे थे? क्या तुम उनका आकार या कोई चित्र इस कागज में बनाकर मुझे दिखा सकते हो? उस गवाह ने उत्तर में कहा कि “दोनो हीरे पोटली में थे तो उसने नही देखे।”
तेनालीराम ने पहले गवाह को वही रुकने के लिए कहा और दूसरे गवाह को बुलवाया और वही सवाल उससे भी पूछा जो सवाल पहले गवाह से पूछे थे। दूसरे गवाह ने कहा, “मैंने वो दोनों हीरे देखे थे जो पोटली में थे।” फिर उसने कुछ अजीब से चित्र कागज पर बना कर तेनालीराम को दिए।
अब तीसरा गवाह तेनालीराम के सामने आया उससे भी तेनालीराम ने वही सवाल पूछे जो सवाल उन्होंने पहले और दूसरे गवाहों से पूछा था और उसने जवाब में कहा कि “हीरे एक लाल रंग के कागज में लिपटे हुए थे, इसलिए उसने उन्हें देखा नहीं।”
पर्दे के पीछे बैठे हुए राजा कृष्णदेव राय ने तीनों गवाहों की बातें सुनी थी। सबकी अलग-अलग बातों और मन गरंत बयानों से यह स्पष्ट हो गया था कि नामदेव सच बोल रहा था और उसका मालिक झूठा है। साथ ही उन तीनों गवाहों को भी समझ आ गया कि उनका भी झूठ पकड़ा गया है को उन्होंने नामदेव के विरुद्ध कहा था।
सभी गवाहों ने महाराज के पैर पकड़ लिए और बताया कि नामदेव के विरुद्ध गवाह देने के लिए उनके मालिक ने कहा था अगर वो ऐसा नही करते तो उनका मालिक उन्हें काम से निकल देने की धमकी दे रहा था और उन्हें मजबूरन ऐसा करना पड़ा। और सभी महाराज के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगे, माफी की गुहार करने लगे।
चूंकि सच और झूठ का पता चल गया था तो महाराजा सीधे अपने दरबार में जाते है और अपने सैनिकों को नामदेव के मालिक और उसके झूठे गवाहों को हिरासत में लेने का आदेश देते है साथ ही मालिक के घर की तलाशी भी ली जाती है जहा पर उन दो हीरो की पोटली को जब्त कर लिया जाता है और उसपर 40 हजार स्वर्ण मुद्राओं का जुर्माना लगा दिया जाता है।
राजा कृष्णदेव उस जुर्माने की राशि में से 15 हजार स्वर्ण मुद्राएं नामदेव को दे देते है।
कहानी से हमने क्या सीखा
इस कहानी से दो सीख मिलती है,
- पहली कि किसी के साथ हमे धोखा नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका परिणाम कभी भी सही नही होता
- दूसरी सीख यह मिलती है कि हम बुद्धिमानी से हर किसी का झूठ पकड़ सकते है।
2. Tenali Raman Stories in Hindi – सोने के आम

राजा कृष्णदेव राय की माता समय समय के साथ बहुत वृद्ध हो गई थीं। एक बार वे इतना बीमार पड़ गई की राजा को लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएंगी। उनकी माता को आम बहुत पसंद थे इसलिए जीवन के अंतिम दिनों में वे ब्राह्मणों को आम दान करना चाहती थीं, अतः अपने अंतिम दिनों में उन्होंने राजा से ब्राह्मणों को आम दान करने की इच्छा प्रकट की।
उनकी माता को यह विश्वास था कि इस प्रकार ब्राह्मणों को आम दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी, लेकिन कुछ दिनों बाद राजा कृष्णदेव राय की माता अपनी अंतिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही स्वर्ग सिधार गईं। राजा ने अपनी माता के मृत्यु के पश्चात् विजयनगर के सभी विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें अपनी मां की अंतिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया।
कुछ देर तक ब्राह्मण चुप रहे फिर कुछ समय के पश्चात बोले, ‘यह तो बहुत ही बुरा हुआ राजन, अंतिम इच्छा के बिना उनकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शांति का उपाय शीघ्र अतिशीघ्र करना चाहिए।
तब राजा कृष्णदेव ने ब्राह्मणों से अपनी माता की अंतिम इच्छा की पूर्ति का उपाय पूछा। ब्राह्मण कुछ देर अपनी पोथी पत्रा खोले और कुछ मन ही मन विचार किया फिर बोले, ‘उनकी आत्मा की शांति का बस एक ही उपाय है। आपको ब्राह्मणों में उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना पडेगा। अतः उनके कहे अनुसार राजा ने मां की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिए अपने महल में बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए।
जब तेनालीराम को राजा द्वारा ब्राह्मणों को सोने के आम दान करने की बात पता चली, तो वह तुरंत समझ गए कि ब्राह्मणों ने राजा की सरलता तथा भोलेपन का लाभ उठाया हैं, अतः तेनालीराम ने उन ब्राह्मणों को पाठ पढ़ाने के लिए एक योजना बनाई।
अगले दिन तेनालीराम ने उन्ही ब्राह्मणों को निमंत्रण-पत्र भेजा जो राजा की माता के पुण्यतिथि में आए हुए थे। उस पत्र में लिखा था कि तेनालीराम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता है, क्योंकि वे भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर मरी थीं। जबसे उसे पता चला है कि उसकी मां की अंतिम इच्छा पूरी न होने से वो प्रेत-योनि में भटकती रहेंगी। तब से वह बहुत ही दुखी है और चाहता है कि जल्दी से उसकी भी माता की आत्मा को शांति मिले।
ब्राह्मणों ने सोचा कि तेनालीराम शाही विदूषक है अतः उनके घर से भी बहुत अधिक दान मिलेगा। सभी ब्राह्मण निश्चित दिन पर तेनालीराम के घर पहुंच गए और सभी ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। सभी ने बड़े प्रेम से भोजन किया।
भोजन करने के पश्चात सभी तेनालीराम द्वारा दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि तेनालीराम कुछ लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहे थे। ब्राह्मणों द्वारा पूछने पर तेनालीराम बोला, ‘मेरी मां फोड़ों के दर्द से बहुत परेशान थीं।
मृत्यु के समय मेरी मां को बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिंकाई करता, वह मर चुकी थी। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार मुझे आप को भी जलते हुए लोहे को सलाखों से सेकाई करनी होगी तभी उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। यह सुनते ही सभी ब्राह्मण बौखला गए। वे सभी वहां से तुरंत भाग जाना चाहते थे। तेनालीराम से ब्राह्मण गुस्से मे बोले, “हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को शांति कैसे मिलेगी?”
तेनालीराम ने झट से कहा “नहीं महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा.. यदि सोने के आम दान में देने से हमारे महाराज की माता की आत्मा को शांति मिल सकती है तो मैं भी अपनी मां की अंतिम इच्छा को क्यों पूरा नही कर सकता?”
‘यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए कि तेनालीराम के कहने का तात्पर्य क्या है। वे बोले, ‘तेनालीराम, हमें क्षमा करो हम वे सोने के आम तुम्हें वापस लौटा देते हैं। बस तुम हमें यहां से जाने दो।’ तेनालीराम ने सोने के आम लेकर सभी ब्राह्मणों को जाने दिया, परंतु उनमें से एक लालची ब्राह्मण ने राजा को जाकर सारी बात बता दी।
यह सुनते ही राजा कृष्णदेव राय क्रोधित हो गए और उन्होंने तेनालीराम को दरबार में बुलाया। वे बोले, ‘तेनालीराम यदि तुम्हें सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मांग लेते। तुम इतने लालची कब से और कैसे हो गए कि ब्राह्मणों से सोने के आम ले लिए?
महाराज, मैं लालची नहीं हूं, बल्कि मैं तो उनकी लालच की प्रवृत्ति को रोकने का प्रयास कर रहा था। यदि वे आपकी मां की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मां की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते? ‘राजा कृष्णदेव राय अब तेनालीराम की बातों का अर्थ समझ गए थे।
3. Tenali Raman Stories in Hindi- जादुई कुए

राजा कृष्णदेव राय ने अपने गृहमंत्री को विजयनगर राज्य में कुएं बनाने का आदेश दिया। गर्मियां पास आ रही थीं इसलिए राजा चाहते थे कि गर्मी का मौसम आने से पहले कुएं शीघ्र तैयार हो जाएं ताकि लोगों को गर्मियों में थोड़ी बहुत राहत मिल सके और राज्य में शीतल जल की कमी न पड़े।
गृहमंत्री ने इस कार्य हेतु शाही कोष में से बहुत-सा धन प्राप्त कर लिया। शीघ्र ही राजा के आदेशानुसार नगर में अनेक कुएं तैयार कर दिए गए। इसके बाद एक दिन राजा कृष्णदेव राय ने विजयनगर का भ्रमण किया और कुछ कुओं का स्वयं निरीक्षण किया की क्या वे कुएं अच्छे से बने है अथवा नही। अपने आदेश को सही ढंग से पूरा होते देख राजा बहुत संतुष्ट हुए।
जब गर्मियों का मौसम आ गया तो एक दिन नगर के बाहर से कुछ गांव वाले तेनालीराम के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचे, वे सभी गृहमंत्री के विरुद्ध शिकायत लेकर आए हुए थे। तेनालीराम ने उन सब की शिकायत को ध्यानपूर्वक सुनी और उन्हें न्याय प्राप्त करने का मार्ग बताया।
तेनालीराम ठीक दूसरे दिन राजा से मिलते है और उनसे बोले, ‘महाराज! विजयनगर में कुछ चोर घुस आए है मुझे मेरे गुप्तचरों से उनके होने की सूचना मिली है। वे हमारे कुएं चुराने के लिए आए है और कुछ कुंए तो चोरी भी हो गए हैं।’
तेनालीराम की बात सुन राजा बोले, कैसी बात करते हो, तेनालीराम! कोई चोर कुएं को कैसे चुरा सकता है वो भी हमारे राज्य में?’
इसपर तेनालीराम बोले, ‘ महाराज! यह बात आश्चर्यजनक तो जरूर है, परंतु बिलकुल सच है। वे चोर अब तक कई कुएं चुरा भी चुके हैं।’ तेनालीराम ने बहुत ही भोलेपन से अपनी बात कही।
तेनाली की बात सुनकर दरबार में मौजूद सभी दरबारी हंसने लगे और तेलानी की बातो का मजाक उड़ाने लगे।
राजा कृष्णदेव ने कहा, ‘तेनालीराम, आज तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना! तुम कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो आज? तुम जो बाते मुझे बता रहे हो इसपर मैं क्या कोई और भी विश्वास नही करेगा।’
‘ महाराज! मैं जानता था कि आप और इस सभा के मंत्री गण मेरी बात पर विश्वास नहीं करंगे इसलिए मैं अपने साथ कुछ गांव वालों को भी लाया हूं। जो कुंए चोरी होने। के चस्मदीद गवाह है और वे सभी बाहर ही खड़े हैं। यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं हो रहा है तो आप उन सब को दरबार में बुलाकर खुद ही पूछ लीजिए। वे आंखों देखी सारी बात आपको विस्तारपूर्वक अच्छे से बता दंगे।’
राजा ने बाहर खड़े सभी गांव वालों को दरबार में लाने आ आदेश दिया। उनमें से एक गांव वाला बोला, ‘महाराज! गृहमंत्री द्वारा जो कुएं बनाए गए थे वे सभी कुएं धीरे धीरे समाप्त हो रहे हैं, आप स्वयं चलकर देख सकते हैं।’
राजा ने गांव वालो की बात मान ली और गृहमंत्री, तेनालीराम, कुछ दरबारियों व गांव वालों के साथ उन कुओं का निरीक्षण करने के लिए चल दिए। पूरे विजयनगर का निरीक्षण करने के पश्चात उन्होंने पाया कि राजधानी के आस-पास के अन्य स्थानो तथा गांवों में तो कोई कुआं है ही नहीं।
राजा कृष्णदेव को यह पता लगते देख वह गृहमंत्री बहुत घबरा गया। वास्तव में उस गृहमंत्री ने मजदूरों से कुछ कुओं को ही बनाने का आदेश दिया था। और बाकी का बचा हुआ धन उसने अपनी सुख-सुविधाओं पर खर्च कर लिए थे।
अब तक राजा भी तेनालीराम की बात का अर्थ समझ चुके थे की उनके कहने का तात्पर्य क्या था। राजा गृहमंत्री पर क्रोधित होने लगे, तभी तेनालीराम बीच में बोले, ‘महाराज! इसमें गृहमंत्री जी का कोई दोष नहीं है। वास्तव में वे सभी कुएं जादुई थे, जो बनने के कुछ दिन बाद ही स्वयं समाप्त हो गए।’
अपनी बात को समाप्त करते हुए तेनालीराम गृहमंत्री की ओर देखने लगे। गृहमंत्री ने शर्म से अपना सिर झुका लिया।
राजा ने गृहमंत्री को बहुत डांटा तथा उस पर कुछ स्वर्ण मुद्राओं का जुर्माना लगाते हुए और सौ कुएं बनवाने का आदेश दिया। इस बार कार्य की सारी जिम्मेदारी तेनालीराम को सौंपी गई और इस प्रकार विजयनगर में पुनः से नए कुंए बनाए गए।
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4. Tenali Raman Stories in Hindi- सबसे बड़ा कौन?

राजा कृष्णदेव राय एक दिन महल में अपनी रानी के पास विराजमान थे। तभी तेनालीराम की बात चली, तो राजा बोले सचमुच हमारे दरबार में उस जैसा चतुर व्यक्ति कोई नहीं है इसलिए अभी तक उसे कोई नही हरा पाया है। इतना सुनकर महारानी बोली, आप कल तेनालीराम को भोजन के लिए हमारे महल में आमंत्रित करें। मैं उन्हें जरूर हरा दूंगी।
राजा ने मुस्कुराते हुए हामी भर ली। अगले दिन अपने हाथों से रानी ने स्वादिष्ट पकवान बनाए। तेनालीराम और राजा एक साथ भोजन करने बैठे। तेनालीराम उन पकवानों की जी-भरकर प्रशंसा करते हुआ खाता जा रहा था। खाने के बाद महा रानी ने तेनालीराम को एक बढ़िया सा पान का बीड़ा भी खाने को दिया। तेनालीराम मुस्कराते हुए बोले, ‘सचमुच, आज के जैसा भोजन खाने का आनंद तो मुझे इसके पहले कभी नहीं आया!’ तभी रानी ने अचानक से तेनालीराम से एक प्रश्न पूछ लिया, ‘अच्छा तेनालीराम एक बात बताओ,
राजा बड़े हैं या मैं? रानी का प्रश्न सुन कर तेनालीराम चकराया। राजा-रानी दोनों ही उत्सुकता से उसकी तरफ देख रहे थे कि भला तेनालीराम जवाब क्या देता है। अचानक तेनालीराम को जाने क्या सूझी, उसने अपने दोनों हाथ जोड़े और पहले धरती को प्रणाम किया, फिर अचानक से जमीन पर गिर पड़े।
रानी घबरा गई और बोली, ‘अरे-अरे, यह क्या हुआ तेनालीराम को? तभी तेनालीराम उठकर खड़ा हो जाता है और बोला हे ‘महारानीजी, मेरे लिए तो आप धरती हैं और महाराजा आसमान! अब दोनों में से किसे छोटा कहूं और किसे बड़ा! कुछ समझ में नहीं आ रहा है। वैसे आज महारानी के हाथों का बना हुआ भोजन इतना स्वादिष्ट था की मुझे उन्हीं को बड़ा कहना होगा इसलिए मैं धरती को ही दंडवत प्रणाम कर रहा था।’ यह सुनकर राजा और रानी दोनों की हंसी छूट जाती हैं।
रानी बोली ‘सचमुच तुम बहुत चतुर हो तेनालीराम। मुझे जिता दिया, पर हारकर भी खुद जीत गए। इस पर महारानी और राजा कृष्णदेव राय के साथ तेनालीराम भी ठहाके लगाते हुए हंस देते हैं।
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5. Tenali raman stories in hindi – चोरी पकड़ी गई

एक बार विजयनगर में लगातार चोरी होनी शुरू हुई की सभी विजयनगर वासी परेशान हो कर राजा कृष्णदेव राय की शरण में अपनी फरियाद लेकर जाते है। सभी पीड़ितो ने राजा के दरबार में दुहाई देते हुए कहा, ‘महाराज हम लूट गए बरबाद हो गए, चोर रात को ताला तोड़कर हमारी तिजोरी का सारा धन उड़ा ले गए।’ राजा कृष्णदेव राय ने इन घटनाओं की जांच कोतवाल को सौपी और करवाई शुरू की गई, परन्तु उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगा।
सभी बहुत परेशान और चिंतित थे। चोरी की घटनाएं प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं थी। चोर चोरी करने के बाद कुछ भी सुराख नही छोड़ते थे। जिससे चोरों की हिम्मत भी बढ़ती रही। अंत में एक दिन राजा चोरी की घटनाओं से परेशान होकर दरबारियों को लताड़ते हुए कहा, ‘क्या आप में से कोई भी ऐसा नहीं, जो चोरों को पकड़वाने की जिम्मेदारी ले सके?’ इस पर सभी दरबारी एक- दूसरे का मुंह ताकने लगे। तभी तेनालीराम ने उठकर कहा, ‘महाराज यह जिम्मेदारी मैं लूंगा और वहां से उठकर तेनालीराम नगर के एक प्रसिद्ध जौहरी के यहां गए।
उन्होंने अपनी योजना के बारे में जौहरी से बताई और घर लौट गए। उस जौहरी ने तेनालीराम के बताए हुए योजना के अनुसार अगले दिन अपने यहां आभूषणों की एक बहुत बड़ी प्रदर्शनी लगवाई। रात होने पर जौहरी ने सारे आभूषणों को एक तिजोरी में रखकर ताला लगा दिया और उसको ताजे रंग से रंग दिया और एक अंधेरे कमरे में तिजोरी रख दी।सभी चोरो का इंतजार करने लगे। आधी रात होते ही चोर आ धमके। चोर ताला तोड़कर तिजोरी में रखे सारे आभूषण थैले में डालकर हवेली से बाहर आ गए।
तभी सेठ को चोरों के होने की आहट मिली और उसने तुरंत जोर जोर से शोर मचाना शुरू किया। आस-पास के लोग भी वहां आकर जुट जाते है। तेनालीराम भी अपने सिपाहियों के साथ वहां आ धमके और सिपाहियो से बोले, ‘जिन लोगो के हाथों में रंग लगा हुआ है, उन्हें पकड़ लो।’ इस तरह जल्द ही सारे चोर पकड़े गए।
अगले दिन तेनालीराम ने चोरों को दरबार में पेश किया गया। सभी के हाथों पर रंग लगा हुआ देखकर राजा ने तेनालीराम से पूछा, ‘तेनालीराम यह क्या है?
तेनालीराम बोले, ‘महाराज हमने तिजोरी बंद करने के बाद उस पर गीला रंग लगा दिया था ताकि चोरी के इरादे से आए हुए चोरों के शरीर पर रंग लग जाए और हम उन्हें पकड़ने में आसानी हो सकें।
राजा ने तेनालीराम से पूछा, ‘ आप ने तिज़ोरी में रंग क्यू लगाए आप वहां पर सिपाहियों को भी तैनात कर सकते थे।’
तेनालीराम जवाब देते हुए बोले, ‘महाराज इसमें सिपाहीयो के चोरों से मिल जाने की संभावना थी। यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय खूब प्रसन्न हुए और तेनालीराम की खूब प्रशंसा की।
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6. Tenali Raman Stories in Hindi – कुल कितने कौवे?
short tenali raman stories in hindi ‘Kul Kitne Kauve”
महाराज कॄष्णदेव राय सदैव कभी न कभी तेनालीराम का मज़ाक उडाने के लिए उल्टे-पुल्टे सवाल करते रहते थे। तेनालीराम हर बार उनके सवालो का ऐसा उत्तर देते थे कि राजा की बोलती ही बन्द हो जाती थी। ऐसे ही एक दिन राजा ने तेनालीराम से पूछा “तेनालीराम! एक बात बताओ कि हमारी राजधानी में कुल कितने कौवे रहते है?”
तेनालीराम जी तपाक से बोले, हां बता सकता हूं महाराज! महाराज बोले बिल्कुल सही गिनती बताना तेनाली कही कोई भी कौवा छूटने न पाए सब की सही सही गिनती चाहिए मुझे।
पुनः तेनाली बोले, जी हां महाराज, बिल्कुल सही सही संख्या बताऊंगा। वहां उपस्थित दरबारियों ने अंदाज लगा लिया कि आज तेनालीराम जरुर फंसेगा। क्योंकि परिंदो की गिनती करना असंभव हैं? महाराज ने आदेश की भाषा में तेनालीराम से कहा “तुम्हें दो दिन का समय देते हैं। तीसरे दिन तुम्हें बताना हैं कि हमारे विजयनगर की राजधानी में कितने कौवे हैं?”
तीसरे दिन जब दरबार लगा तो तेनालीराम अपने स्थान पर उठ खड़े हुए और बोले “महाराज, हमारी राजधानी में कुल एक लाख पच्चीस हजार नौ सौ निन्यानवे कौवे हैं। अगर किसी को शक हो गिनती में तो गिनती करा लें।
राजा ने तेनाली से कहा ‘अगर गिनती होने पर संख्या ज्यादा-कम निकली तो?
तेनालीराम ने बड़े विश्वास के साथ कहा, ‘महाराज ऐसा, नही होगा! अगर गिनती गलत निकली तो इसका भी एक कारण होगा।
राजा ने पूछा “क्या कारण हो सकता हैं तेनाली?”
तेनालीराम ने तपाक से जवाब दिया “यदि! राजधानी में कौवों की संख्या बढ जाती हैं तो इसका मतलब हैं कि हमारी राजधानी में कौवों के कुछ रिश्तेदार और इष्ट मित्र उनसे मुलाकात करने के लिए आए हुए हैं। और यदि संख्या घटी तो इसका मतलब यह हैं कि हमारे कुछ कौवे राजधानी से बाहर अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए गए हुए हैं। वरना कौवों की संख्या एक लाख पच्चीस हजार नौ सौ निन्यानवे ही होगी। तेनालीराम से जलने वाले दरबारी अंदर ही अंदर सोचते रह गए की कैसे ये चालबाज हमेशा की तरह फिर अपनी चालाकी दिखाते हुए पतली गली से बच निकला।
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7. Tenali Raman Stories in Hindi – कीमती उपहार
short tenali raman stories in hindi ‘Kimti Uphar’
राजा कृष्णदेव राय ने लड़ाई में बहुत सी संपत्ति जीती और इस जीत पर वे विजयउत्सव भी मनाएं। उत्सव की समाप्ति होने पर राजा ने कहा ’लड़ाई की जीत अकेले मेरी जीत नहीं है, ये मेरे सभी साथियों और सहयोगियों की भी जीत है और मैं यह चाहता हूं कि मेरे मंत्रिमंडल के सभी सदस्य इस अवसर पर अपने अपने हिस्से का पुरस्कार प्राप्त करें।
आप सभी को अपनी-अपनी पसंद का पुरस्कार मिलेगा, परंतु मेरी एक शर्त है कि सभी को अलग-अलग पुरस्कार ही लेने होंगे। एक ही वस्तु दो आदमी नहीं ले सकेंगे। यह घोषणा करने के बाद राजा ने उस मंडप को एक पर्दे से ढकवा दिया जिस मंडप में सारे पुरस्कार सजाकर एक जगह पर रखे गए थे। फिर क्या था! सभी लोग बढ़िया से बढ़िया पुरस्कार पाने के लिए पहल करने लगे। सभी लोगों की गिनती के हिसाब से पुरस्कार भी रखे गए थे।
थोड़ी देर की धक्का-मुक्की और छीना-झपटी के बाद सभी को पुरस्कार मिल गए। सभी पुरस्कार बेसकीमती थे। अपना-अपना पुरस्कार पाकर सभी संतुष्ट हुए। अंत में बचा सबसे कम मूल्य का पुरस्कार- एक चांदी की थाली। यह पुरस्कार उस आदमी के लिए था, जो दरबार में सबके बाद पहुंचे यानी दंड स्वरूप था।
सब लोगों ने जब खोजबिन की और पता लगाया तो श्रीमान तेनालीराम अभी तक पहुंचे ही नही थे। यह जानकर सभी दरबारी बहुत खुश थे। सभी ने सोचा कि इस सस्ते पुरस्कार को पाते हुए हम सब तेनालीराम का खूब मज़ाक उड़ाएंगे। और तब बड़ा मजा आएगा। तभी कुछ समय पश्चात श्रीमान तेनालीराम भी आ गए।
सभी एक स्वर में चिल्ला पड़े, ‘आइए, तेनालीरामजी, आइए! एक अनोखा पुरस्कार आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा है।’ तेनालीराम ने सभी दरबारियों पर जब अपनी दृष्टि डाली तो सभी के हाथों में अपने-अपने पुरस्कार थे। किसी के गले में स्वर्ण माला थी, तो किसी के हाथ में सोने का धनुष बाण।
किसी के सिर पर सुनहरे रेशम की पगड़ी थी, तो किसी के हाथ में हीरे की अंगूठी। तेनालीराम उन सब चीजों को देखकर झट से सारी बात समझ गया। तेनाली ने चुपचाप चांदी की थाली उठाई और उसको मस्तक से लगाया और फिर उसको कपड़े से ढंक दिया, ढकने के बाद ऐसा लग रहा था जैसे थाली में कुछ रखा हुआ हो।
तेनालीराम को राजा कृष्णदेव राय ने दुपट्टे से थाली को ढंकते हुए देख लिया। वे बोले, ‘तेनालीराम, थाली को दुपट्टे से इस तरह से ढंक क्यों रहे हो?” तेनालीराम बोले, क्या करूं महाराज, अब तक तो मुझे आपके दरबार से हमेशा स्वर्ण अशर्फियों से भरे हुए थाल मिलते रहे हैं। यह पहली बार हुआ है जो मुझे चांदी की थाली मिली है।
मैं इस थाल को इसलिए कपड़े से ढंक रहा हूं ताकि आपकी बात बनी रहे। सब यही समझे कि तेनालीराम को इस बार भी महाराज ने अशर्फियों से भरी हुई थाली पुरस्कार में दी हैं। महाराज तेनालीराम की चतुराई भरी बातों से अत्यधिक प्रसन्न हो गए।
उन्होंने अपने गले से हीरे का बहुमूल्य हार उतारा और कहा, ‘तेनालीराम, आज भी तुम्हारी थाली खाली नहीं रहेगी। आज उसमें सबसे बहुमूल्य और कीमती उपहार होगा। थाली आगे बढ़ाओ तेनालीराम! ‘तेनालीराम ने तुरंत चांदी की थाली राजा कृष्णदेव राय के आगे कर दी।
राजा ने उसमें अपना बहुमूल्य और बेसकिमती हार रख दिया। वहां मौजूद सभी लोग तेनालीराम की बुद्धि का लोहा मान गए। जो दरबारी थोड़ी देर पहले तेनालीराम का मजाक उड़ा रहे थे, वे सब अब भीगी बिल्ली की तरह एक-दूसरे का मुंह देखने लगे, क्योंकि इसबार भी सबसे कीमती पुरस्कार तेनालीराम को ही मिला था।
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8. Tenali Raman Stories in Hindi – कीमती उपहार कीमती उपहार
(Tenaliram stories ‘Kimti Uphar’ in Hindi with moral)
राजा कृष्णदेव राय ने लड़ाई में बहुत सी संपत्ति जीती और इस जीत पर वे विजयउत्सव भी मनाएं। उत्सव की समाप्ति होने पर राजा ने कहा ’लड़ाई की जीत अकेले मेरी जीत नहीं है, ये मेरे सभी साथियों और सहयोगियों की भी जीत है और मैं यह चाहता हूं कि मेरे मंत्रिमंडल के सभी सदस्य इस अवसर पर अपने अपने हिस्से का पुरस्कार प्राप्त करें।
आप सभी को अपनी-अपनी पसंद का पुरस्कार मिलेगा, परंतु मेरी एक शर्त है कि सभी को अलग-अलग पुरस्कार ही लेने होंगे। एक ही वस्तु दो आदमी नहीं ले सकेंगे। यह घोषणा करने के बाद राजा ने उस मंडप को एक पर्दे से ढकवा दिया जिस मंडप में सारे पुरस्कार सजाकर एक जगह पर रखे गए थे। फिर क्या था! सभी लोग बढ़िया से बढ़िया पुरस्कार पाने के लिए पहल करने लगे। सभी लोगों की गिनती के हिसाब से पुरस्कार भी रखे गए थे।
थोड़ी देर की धक्का-मुक्की और छीना-झपटी के बाद सभी को पुरस्कार मिल गए। सभी पुरस्कार बेसकीमती थे। अपना-अपना पुरस्कार पाकर सभी संतुष्ट हुए। अंत में बचा सबसे कम मूल्य का पुरस्कार- एक चांदी की थाली। यह पुरस्कार उस आदमी के लिए था, जो दरबार में सबके बाद पहुंचे यानी दंड स्वरूप था।
सब लोगों ने जब खोजबिन की और पता लगाया तो श्रीमान तेनालीराम अभी तक पहुंचे ही नही थे। यह जानकर सभी दरबारी बहुत खुश थे। सभी ने सोचा कि इस सस्ते पुरस्कार को पाते हुए हम सब तेनालीराम का खूब मज़ाक उड़ाएंगे। और तब बड़ा मजा आएगा। तभी कुछ समय पश्चात श्रीमान तेनालीराम भी आ गए।
सभी एक स्वर में चिल्ला पड़े, ‘आइए, तेनालीरामजी, आइए! एक अनोखा पुरस्कार आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा है।’ तेनालीराम ने सभी दरबारियों पर जब अपनी दृष्टि डाली तो सभी के हाथों में अपने-अपने पुरस्कार थे। किसी के गले में स्वर्ण माला थी, तो किसी के हाथ में सोने का धनुष बाण।
किसी के सिर पर सुनहरे रेशम की पगड़ी थी, तो किसी के हाथ में हीरे की अंगूठी। तेनालीराम उन सब चीजों को देखकर झट से सारी बात समझ गया। तेनाली ने चुपचाप चांदी की थाली उठाई और उसको मस्तक से लगाया और फिर उसको कपड़े से ढंक दिया, ढकने के बाद ऐसा लग रहा था जैसे थाली में कुछ रखा हुआ हो।
तेनालीराम को राजा कृष्णदेव राय ने दुपट्टे से थाली को ढंकते हुए देख लिया। वे बोले, ‘तेनालीराम, थाली को दुपट्टे से इस तरह से ढंक क्यों रहे हो?” तेनालीराम बोले, क्या करूं महाराज, अब तक तो मुझे आपके दरबार से हमेशा स्वर्ण अशर्फियों से भरे हुए थाल मिलते रहे हैं। यह पहली बार हुआ है जो मुझे चांदी की थाली मिली है।
मैं इस थाल को इसलिए कपड़े से ढंक रहा हूं ताकि आपकी बात बनी रहे। सब यही समझे कि तेनालीराम को इस बार भी महाराज ने अशर्फियों से भरी हुई थाली पुरस्कार में दी हैं। महाराज तेनालीराम की चतुराई भरी बातों से अत्यधिक प्रसन्न हो गए।
उन्होंने अपने गले से हीरे का बहुमूल्य हार उतारा और कहा, ‘तेनालीराम, आज भी तुम्हारी थाली खाली नहीं रहेगी। आज उसमें सबसे बहुमूल्य और कीमती उपहार होगा। थाली आगे बढ़ाओ तेनालीराम! ‘तेनालीराम ने तुरंत चांदी की थाली राजा कृष्णदेव राय के आगे कर दी।
राजा ने उसमें अपना बहुमूल्य और बेसकिमती हार रख दिया। वहां मौजूद सभी लोग तेनालीराम की बुद्धि का लोहा मान गए। जो दरबारी थोड़ी देर पहले तेनालीराम का मजाक उड़ा रहे थे, वे सब अब भीगी बिल्ली की तरह एक-दूसरे का मुंह देखने लगे, क्योंकि इसबार भी सबसे कीमती पुरस्कार तेनालीराम को ही मिला था।
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9. tenali raman stories in hindi – जाड़े की मिठाई
short tenali raman stories in hindi ‘Jade ki mithai’
एक बार राजा कृष्णदेव राय के साथ राजमहल में तेनालीराम और राजपुरोहित बैठे थे। जाड़े का मौसम चल रहा था। तीनों सुबह की धूप सेंकते हुए बातचीत में व्यस्त थे, तभी एकाएक राजा ने कहा- ‘जाडे का मौसम सभी मौसमों में सबसे अच्छा मौसम होता है। खूब खाओ और अपना सेहत बनाओ।
खाने की बात सुनते ही पुरोहित के मुंह में पानी आ गया और बोला ”महाराज, जाड़े में तो मेवा और मिठाई खाने का अपना ही आनंद है।”
कृष्णदेव राय ने पूछा, “अच्छा बताओ, जाड़े की सबसे अच्छी मिठाई कौन-सी है?’
पुरोहित ने हलवा, मालपुए, पिस्ते की बर्फी और दो तीन मिठाइयां गिना दीं।
राजा ने सभी मिठाइयां मंगवाईं और पुरोहित से कहा- ‘जरा इन मिठाइयों को खाकर बताइए, इनमें से सबसे अच्छी कौन-सी मिठाई है?’ पुरोहित को तो सभी मिठाइयां अच्छी लगती थीं। वो सोचने लगा की किस मिठाई को सबसे अच्छा बताऊ?
तभी तेनालीराम ने कहा, ‘सब अच्छी हैं, मगर यहां पर वो मिठाई नहीं मिलेगी।
राजा कृष्णदेव राय ने बड़ी उत्सुकता से पूछा, कौन-सी मिठाई? और उस मिठाई का नाम क्या है?”
तेनालीराम ने जवाब दिया, नाम पूछकर क्या करेंगे महाराज! आज रात को आप मेरे साथ चलें, मैं वह मिठाई आपको खिलवा भी दूंगा। राजा कृष्णदेव तेनालीराम की बात मान गए।
रात को साधारण वेश में महाराज, पुरोहित और तेनालीराम तीनो एक साथ चल पड़े। तीनों चलते-चलते काफी दूर निकल गए। एक जगह तीन चार आदमी अलाव के सामने बैठकर अपने बातों में खोए हुए थे। ये तीनों भी वहां पर रुक कर अलाव आ आनंद लेने लगते है। तीनो के साधारण वेशभूषा के कारण लोग उन्हें पहचान भी न पाए। उनके पास में ही कोल्हू चल रहा था। तेनालीराम कोल्हू वाले को कुछ पैसे देकर गरमा-गरम गुड़ खरीद लाए। गुड़ लेकर तेनालीराम उन दोनो के पास आ गए।
तेनालीराम अंधेरे में राजा और पुरोहित को थोड़ा-थोड़ा गरम-गरम गुड़ देते हुए बोले- ‘लीजिए महाराज खाइए, जाड़े की असली मिठाई!’
राजा ने गरम-गरम गुड़ खाया तो उन्हे बड़ा स्वादिष्ट लगा। वे बोले, ‘वाह, इतना स्वादिष्ट मिठाई, यहां अंधेरे में कहां से आई?
तभी तेनालीराम को पास में पड़ी कुछ सुखी पत्तियां दिखाई दीं। वह अपनी जगह से उठा और कुछ पत्तियों को इकट्ठी कर उसमे आग लगा दी।
फिर थोड़ा प्रकाश होने पर बोला, “महाराज, यह गुड़ है।
राजा अचंभित होकर बोले “ ये गुड़ है… और इतना स्वादिष्ट!”
तेनालीराम ने कहा, महाराज, जाड़ों में असली स्वाद गरम चीज में रहता है। यह गुड़ गरम है तभी इतना स्वादिष्ट है। यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय मुस्कुरा दिए। पुरोहित अब समझ चुका था की सबसे स्वादिष्ट मिठाई गुड है।
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10. Tenali raman stories in hindi- उधार का बोझ
short tenali raman stories in hindi ‘udhar Ka Bojh’
एक बार तेनालीराम को वित्तीय परेशानी के कारण राजा कृष्णदेव राय से कुछ रुपए उधार लेने पड़े। जिसके बाद समय बीत रहा था और राजा को उनके पैसे वापस करने का भी समय निकट आ गया था, परंतु तेनालीराम के पास अभी तक उधार के पैसे वापस लौटाने का कोई जुगाड नहीं हो पाया था, अतः उसने उधार चुकाने से बचने के लिए एक बेहतरीन योजना बनाई।
एक दिन तेनालीराम की पत्नी की ओर से राजा को एक पत्र प्राप्त हुआ। उस पत्र में तेनालीराम के बीमारी के बारे में लिखा था और तेनालीराम कई दिनों से दरबार में भी नहीं आ रहा था। इसलिए राजा ने भी सोचा कि स्वयं जाकर तेनाली से मुलाकात की जाए। साथ ही राजा को संदेह भी था कि कहीं उधार से बचने के लिए तेनालीराम की कोई योजना तो नहीं है।राजा तेनालीराम के हवेली पर पहुंचे।
वहां उन्होंने देखा की तेनालीराम कम्बल ओढ़कर पलंग पर लेटा हुआ था। उसकी ऐसी अवस्था देख राजा ने तेनालीराम की पत्नी से उसके बीमार होने का कारण पूछा। वह बोली, ‘महाराज, इनके दिल पर आपके उधार का बोझ है और शायद यही चिंता है जो इन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रही है और ये बीमार भी हो गए।
‘राजा ने तेनाली को सांत्वना देते हुए कहा, ‘तेनाली, तुम परेशान मत हो। तुम मेरा उधार चुकाने के लिए बाध्य नहीं हो। चिंता छोड़ो और शीघ्र अति शीघ्र स्वस्थ हो जाओ।’ यह सुनते ही तेनालीराम पलंग से कूद पड़ा और बोला, ‘महाराज, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
राजा ने क्रोधित होकर तेनालीराम से कहा, “अरे…यह क्या है, तेनालीराम? तुम बीमार नही थे। तुमने मुझसे झूठ बोला ऐसा करने की साहस भी कैसे कि?”
तेनालीराम ने तुरंत कहा, “नहीं मेरे अन्न देवता मैंने आपसे झूठ नहीं बोला। मैं उधार के बोझ से सचमुच में बीमार था। “
आपने जैसे ही उधार से मुझे मुक्त किया, तभी से मेरी समस्त चिंताये समाप्त हो गई और मेरे ऊपर से उधार का बोझ भी हट गया। इस बोझ के हटते ही मेरी बीमारी भी धीरे धीरे चली गई और मैं स्वयं को स्वस्थ महसूस करने लगा। अब मैं आपके आदेशानुसार स्वतंत्र, स्वस्थ व प्रसन्न हूं।’
हमेशा की तरह राजा तेनाली की योजना पर मुस्करा पड़े। क्योंकि उनके पास कुछ कहें को बचा ही नही था
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11. Tenali raman stories in hindi – कुत्ते की दुम सीधी
short tenali raman stories in hindi ‘Kutte Ki Dum Seedhi’
मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है या नहीं इस बात को लेकर राजा कृष्णदेव राय के दरबार में गरमा गरम बहस चल रही थी। कुछ लोगो के अनुसार मनुष्य का स्वभाव बदला जा सकता है। और कुछ का ये मानना था कि ऐसा नहीं हो सकता, जैसे कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती, ये कुत्ते और मनुष्य के स्वभाव को एक जैसा मान रहे थे।
राजा को इस बहस के संबंध में एक विनोद सूझा। उन्होंने कहा, ‘आप सब के अनुसार अगर कुत्ते की दुम सीधी हो सकती है, तो मनुष्य का स्वभाव भी बदल सकता है, और यदि इसके विपरीत दुम सीधा नहीं हुआ तो स्वभाव भी नहीं बदला जा सकता। राजा ने पुनः विनोद को आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘ठीक है, आप लोग यह प्रयत्न करके देखिए।’
राजा ने दस व्यक्तियों को चुना और उन सभी को एक-एक कुत्ते का पिल्ला दिलवाया और छह माह के लिए प्रति माह दस स्वर्ण मुद्राएं देने का निश्चित किया। इन सभी लोगों को कुत्तों की दुम को सीधा करने का प्रयास करना था। इन व्यक्तियों में से एक तेनालीराम भी थे अतः इन्हें भी यही करना था। शेष नौ लोगों ने इन छह मास में कुत्तो की दुम सीधी करने की अपनी अपनी कोशिशें कीं। एक ने तो पिल्ले की पूंछ को भारी वजन से दबा दिया ताकि दुम सीधी हो जाए।
दूसरे ने पिल्ले की दुम को पीतल की एक सीधी पाइप में डाले रखा था। तीसरे ने तो पिल्ले की पूछ सीधी करने के लिए प्रतिदिन पूंछ की मालिश करवाई। छठे महाशय कहीं से जाकर एक तांत्रिक को पकड़ कर लाए हुए थे, जो कई तरह से मंत्र पढ़कर दुम को सीधा करने का प्रयास कर रहा था।
सातवें सज्जन ने अपने पिल्ले की पूछ सीधी करने के लिए शल्य चिकित्सा यानी ऑपरेशन ही करवा डाला था। आठवां व्यक्ति पिल्ले को सामने बिठाकर प्रतिदिन उसे छह माह तक भाषण देता रहा कि पूंछ सीधी करले भाई, सीधी करले। नौवां व्यक्ति पिल्ले को मिठाइयां खिलाता रहा और रोज विचार करता की शायद मिठाई खाकर मान जाए और अपनी पूंछ को सीधी कर ले।
परन्तु तेनालीराम अपने पिल्ले को इतना ही खिलाता जितने से वह जीवित रह ले बस। उसकी पूंछ भी बेजान होकर लटक गई, जो देखने पर सीधी ही जान पड़ती थी। छह माह बीत जाने पर राजा ने उन सभी दस पिल्लों को दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया। नौ व्यक्तियों ने अपने अपने पिल्ले पेश किए जो एकदम हट्टे-कट्टे और स्वस्थ दिख रहे थे।
जब पहले ने वजन हटाया अपने पिल्ले की पूछ से तो वह एकदम टेढ़ी होकर ऊपर उठ गई। दूसरी की दुम जब नली में से निकाली गई वह भी पहले वाले की तरह टेढ़ी हो गई। बाकी के सभी सातों पिल्लों की पूंछ भी टेढ़ी ही थीं। अब तेनालीराम की बारी थी उन्होंने अपना अधमरा-सा पिल्ला राजा के सामने कर दिया।
उसके सारे अंग ढलक मलक रहे थे। तेनालीराम बोला, ‘महाराज, मैंने अपने कुत्ते की दुम को सीधा कर दिया है।”
राजा ने गुस्से में तेनालीराम को कहा, ” दुष्ट तुमको इस बेचारे पशु पर दया नहीं आई? तुमने तो इस बेचारे को भूखा ही मार डाला है। इसमें तो पूंछ हिलाने जितनी शक्ति भी पर्याप्त नहीं बची है।
तेनालीराम विनम्र होकर बोला, “प्रभु, अगर आपने कहा होता कि इसे अच्छी तरह खिलाना पिलाना है तो मैं कोई कसर नहीं छोड़ता, पर आपका आदेश था की इसकी पूंछ को इसके स्वभाव के विरुद्ध सीधा करने का, जो इसे भूखा प्यासा रखने से ही पूर्ण हो सकता था।
महाराज, बिलकुल ऐसे ही मनुष्य का भी स्वभाव होता है जो असल में बदलता नहीं है। हां, आप चाहे तो उसे काल-कोठरी में बंद करके, उसे भूखा प्यासा रखकर उसको जिंदा लाश बना कर उसका स्वभाव बदलने का प्रयास कर सकते है। कृष्णदेव राय और उनके अन्य दरबारी जो मनुष्य के स्वभाव को बदलने की बात कर रहे थे सभी के मुंह पर ताला लग गया था।
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12. Tenali raman stories in hindi – महामूर्ख की उपाधि
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राजा कृष्णदेव राय विजयनगर में होली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाते थे। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के हास्य-मनोरंजन के कार्यक्रम किए जाते थे। हर कार्यक्रम में सफल कलाकार को राजा द्वारा पुरस्कार भी दिया जाता था। कृष्णदेव राय ‘महामूर्ख’ की उपाधि पाने वाले को सबसे बड़ा पुरस्कार दिया करते थे।
कृष्णदेव राय के दरबार में सिर्फ तेनालीराम ही थे जो सबका मनोरंजन किया करते थे। वे बहुत तेज दिमाग के चतुर व्यक्ति थे। उन्हें प्रत्येक वर्ष सर्वश्रेष्ठ हास्यकलाकर होने का पुरस्कार तो मिलता ही था, साथ में ‘महामूर्ख’ की उपाधि भी जीत ले जाते।
कुछ दरबारी थे जो तेनालीराम के जितने पर शोक मनाते थे, वास्तव में वे सभी जलते थे तेनालीराम की बुद्धि और चतुराई से। एक बार उन्होंने मिलकर तेनालीराम को हराने की योजना बनाई। इस बार होली पर उन् सभी ने तेनालीराम को खूब भांग पिलाई। होली के दिन भांग के नशे में तेनालीराम देर तक सोते रह गए। जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा तो दोपहर हो रहा था वे तुरंत तैयार होकर भागते हुए दरबार पहुंचे।
आधा कार्यक्रम समाप्त हो चुका था। कृष्णदेव राय उन्हें देखते ही गुस्से में पूछते हैं, ‘अरे मूर्ख, आज के दिन भी कोई भांग पीकर सोता हैं?’ राजा ने तेनालीराम को ‘मूर्ख कहता सुन सारे दरबारी प्रसन्न हो गए।
उन्होंने भी राजा की हां में हां मिलाई और कहा, ‘आपने बिलकुल ठीक कहा, तेनालीराम मूर्ख ही नहीं महामूर्ख हैं।’ तेनालीराम ने जब सबके मुंह से महामूर्ख वाली बात सुनी तो वे मुस्कराते हुए राजा से बोले, ‘धन्यवाद राजन, आपने अपने मुंह से मुझे महामूर्ख घोषित कर सबसे बड़ी उपाधि दे दि।
तेनालीराम के मुख से ऐसी बात सुनते ही दरबारियों को अपने भूल का पता चल गया, वे खुद ही तेनालीराम को अपने मुंह से महामूर्ख ठहरा चुके थे। और इस प्रकार हर साल की तरह इस साल भी तेनालीराम ही ‘महामूर्ख’ का पुरस्कार जीत ले गए।
FAQ:
तेनालीराम जैसे व्यक्ति थे?
Ans:
तेनाली रामान का नाम कैसे पड़ा?
Ans:
तेनालीराम कौन थे?
Ans:
तेनालीराम किसके दरबार में थे?
Ans:
तेनालीराम की मृत्यु कैसे हुई?
Ans:
तेनालीराम की मृत्यु कब हुई?
Ans:
तेनाली रामा का जन्म कब और कहां हुआ?
Ans:
Tenaliram ka sambandh kis samrat se hai?
Ans: विजयनगर साम्राज्य (१५०९-१५२९) के राजा कृष्णदेवराय ke sath tenalirama ka sambandh hai.
Conclusion:
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