जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 10 और 12 Board Exam (PDF) Download
इस लेख में हम जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय के बारे में विस्तार से अध्यन करेंगे क्योंकि जयशंकर प्रसाद की जीवनी प्रायः बोर्ड के परोक्षाओं में पूछे जाते है जिस वजह से जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय को पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
यदि आप एक विद्यार्थी है और कक्षा 10वीं अथवा 12वीं में अध्यन करते है तो आपको जयशंकर प्रसाद की जीवनी अवश्य पढ़नी चाहिए।
हमने इस लेख (जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय) को बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है जिससे सभी को एक ही स्थान पर जयशंकर प्रसाद के जीवन परिचय और उनकी रचनाओं की जानकारी मिल जाए।
इस लेख की विशेष बात यह है की हमने जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एक कहानी की तरह लिखा है जिससे आप सब की रुचि लेख में बनी रहेगी। लेख को प्रारंभ करने से पहले कवि जयशंकर प्रसाद जी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दिए गए टेबल में दिया गया है जिसे एक बार अवश्य पढ़े।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad Biography In Hindi)
नाम | जयशंकर प्रसाद (जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय) |
पूरा नाम | जयशंकर प्रसाद साहू |
जन्म तिथि | 30 जनवरी 1889 |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तरप्रदेश |
मृत्यु तिथि | 15 नवंबर 1937 |
मृत्यु स्थान | वाराणसी, उत्तरप्रदेश |
आयु | 48 वर्ष |
व्यवसाय | कवि, कथाकार, रचनाकार, नाटककार, उपन्यासकार |
भाषा | संस्कृत व हिंदी प्रधान |
शैली | अलंकृत एवं चित्रोपम |
नाटक | चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, अजातशत्रु |
कहानी संग्रह | इंद्रजाल, आंधी |
शिक्षा | संस्कृत, फारसी, व अंग्रेजी भाषा के साथ ग्रंथो का भी ज्ञान घर पर ही स्वाध्याय द्वारा प्राप्त किए। |
पिता का नाम | बाबू देवकी प्रसाद साहू |
पत्नी का नाम | कमला देवी |
गुरु का नाम | रसमयसिद्ध |
जयशंकर प्रसाद की जीवनी – jaishankar prasad ka jivan parichay WiKi
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय: जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1889ई० दिन-गुरुवार (माघ शुक्ल 10, संवत् 1946 वि०) को काशी के सरायगोवर्धन नामक स्थान में हुआ था। इनके पितामह जिनका नाम शिवरतन साहू था इनका सुरती अर्थात् तंबाकू का बहुत बड़ा व्यवसाय था जिस कारण ये सुघनी साहू के नाम से प्रख्यात थे। जयशंकर प्रसाद जी के पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद साहू था। इनके पिता जी सदैव कलाकारों का सम्मान और आदर किया करते थे जिस कारण इनके पिता बहुत प्रसिद्ध थे।
इनके परिवार का पूरे काशी वाराणसी में बहुत नाम था। इनका परिवार वाराणसी के समृद्ध घरानों ने से एक था इनके पास धन संपत्ति काकोई आभाव नही था। काशी नरेश के बाद संपन्नता में सुघनी साहू परिवार को ही माना जाता था। काशी के लोग काशी नरेश के बाद बाबू देवी प्रसाद को बहुत सम्मान देते थे और उनका स्वागत हर हर महादेव कह कर किया करते थे।
बारह वर्ष की आयु थी जब इनके पिता जी का देहांत हो गया। जिसके बाद घर में सदैव क्लेश बना रहता था। पिता के मृत्यु के 2-3 वर्ष पश्चात ही इनकी माता जी का भी देहांत हो गया। किंतु सबसे अधिक विपत्ति तब आई जब इनके बड़े भ्राता शंभुरतन जी भी ईश्वर को प्यारे हो गए। उस समय जयशंकर प्रसाद जी की उम्र महज 17 वर्ष थी।
किशोरावस्था में ही इनके ऊपर जिम्मेदारियों का पहाड़ अचानक से टूट पड़ा जिसके लिए ये तैयार नहीं थे। इस कच्छी गृहस्ती में सिर्फ उनकी विधवा भाभी ही थी जो एक सहारा थी। विधवा भाभी, कुटुम्ब और परिवार से संबंधित अन्य लोग सभी इनकी संपत्ति को हड़पने का षड्यंत्र करने लगे जिसका जयशंकर प्रसाद जी बड़ी ही धैर्यता, और गंभीरता के साथ सामना किया।
जयशंकर प्रसाद जी की शिक्षा
जयशंकर प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी के क्विंश नामक स्कूल में हुआ। किंतु परिवारिक व्यवसाय की जिम्मेदारियों के कारण घर पर ही इन्होंने स्वाध्याय द्वारा शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने मात्र 8वी कक्षा तक ही स्कूल में अध्यन किया जिसके बाद घर पर ही व्यापक शिक्षा व्यवस्था थी जिससे इन्होंने संस्कृत, हिंदी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी जैसी भाषाओं का अध्यन किया। दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान संस्कृत अध्यापक इनके शिक्षक थे। इनके गुरुओं में रसमय सिद्ध का भी नाम लिया जाता हैं।
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय
इनके पिता कलाकारों का सम्मान व आदर करते थे और सदैव साहित्य व कला का वातावरण बना रहता था। जिस कारण बचपन से ही इनकी भी रुचि साहित्य में थी। जब ये नौ वर्ष के थे तभी इन्होंने ‘कलाधर’ नामक एक सवैया ब्रजभाषा में लिखा था और उसे ‘रसमय सिद्ध’ को दिया था। इनको वेद, पुराण, इतिहास, और साहित्य शास्त्र का भी ज्ञान था। इनको बागवानी का बड़ा शौक था और साथ ही ये भोजन पकाने के भी शौकीन थे।
ये नियमित रूप से व्यायाम किया करते और सात्विक भोजन खाते थे साथ ही कहा जाता है की ये बड़े गंभीर व्यक्ति थे। इनके बड़े भ्राता चाहते थे की जयशंकर प्रसाद जी भी अपने पारिवारिक व्यवसाय को संभाले किंतु इनकी रुचि और प्रेम काव्य रचना में होने के कारण इनके भाई ने इनको पूरी छूट दे रखी थी। अतः इन्होंने अपने भाई की सहमति और आशीर्वाद लेकर साहित्य लेखन और काव्य रचना में लग गए।
जयशंकर प्रसाद जी की प्रारंभिक रचनाएं
विद्वानों के द्वारा ऐसा सुना जाता है की महज 9 वर्ष की आयु में जयशंकर प्रसाद जी ने ब्रजभाषा में कलाधर उपनाम से एक सवैया लिखकर अपने गुरु श्री रसमयसिद्ध को दिखाया था। जयशंकर प्रसाद जी की प्रारंभिक रचनाएं ब्रजभाषा में मिलती है। लेकिन बाद में वे खड़ीबोली को अपनाते गए। प्रसाद जी के भांजे अंबिका प्रसाद गुप्त ने 1909 में अपने संपादकत्व में इंदु नामक एक पत्रिका प्रकाशित की जिसमे प्रसाद जी नियमित रूप से लिखना आरंभ किया अतः इनके प्रारंभिक रचनाओं को इनके इंदु पत्रिका में देखा जा सकता है।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं
जयशंकर प्रसाद जी ने अपने जीवन में कई रचनाओं की रचना की जो आज भारत के इतिहास में गौरव और संस्कृति को स्थापित किए हुई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं –
जयशंकर प्रसाद की कविताएं (काव्य):
- झरना,
- ऑसू,
- लहर,
- कामायनी,
- प्रेम पथिक,
- चित्राधार।
जयशंकर प्रसाद जी की गद्य रचनाएं
नाटक: जयशंकर प्रसाद के नाटक pdf | जयशंकर प्रसाद के नाटक के नाम
- स्कंदगुप्त
- चंद्रगुप्त,
- ध्रुवस्वामिनी
- जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री,
- अजातशत्रु,
- विशाख,
- एक घूँट,
- कामना,
- करुणालय,
- कल्याणी परिणय,
- अग्निमित्र प्रायश्चित सज्जन
कहानी संग्रह: जयशंकर प्रसाद की कहानी संग्रह
- छाया,
- प्रतिध्वनि,
- आकाशदीप,
- आँधी,
- इंद्रजाल
- गुंडा
उपन्यास:
- ककाल
- तितली
- इरावती।
चन्द्रगुप्त नाटक जयशंकर प्रसाद pdf
चंद्रगुप्त नाटक जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित समस्त नाटकों में प्रमुख और प्रसिद्ध नाटक है। जिसकी रचना इन्होंने सन् 1931 में की थी। इसमें विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष से मिलने वाली विजय को दर्शाया गया है।
इस नाटक में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के उत्थान का वर्णन है। साथ ही महाशक्तिशाली मगध राज्य के राजा घनानंद के पतन का भी वर्णन है। जिस समय प्रसाद जी अपनी रचनाएं कर रहे थे उस समय अंग्रेजो का शासन था। अंग्रेज भारत की सभ्यता और इसकी संस्कृति को हीन भाव से देखते थे।
प्रसाद जी भारतीयों में अपने गौरवमय भारतीय संस्कृति की याद दिला कर उनमें स्फूर्ति का संचार करना चाहते थे। इसी उद्देश्य से प्रसाद जी ने भारतीय गौरवमय संस्कृतिक इतिहास को अपने इस नाट्य रचना के माध्यम से साहित्य का आधार दिया है।चंद्रगुप्त नाटक में बताया गया है की कैसे एक अयोग्य शासक देश को हानि पहुंचाता है।
प्रसाद जी को जनतंत्र में विश्वास था उनका मानना था की जनता के द्वारा चुना गया राजा ही योग्य शासक हो सकता है और वो अपने उचित प्रतिनिधित्व के द्वारा देश को सही दिशा में ले जा सकता है। यही कारण है की सर्वगुण सम्पन्न चंद्रगुप्त मौर्य को जनता द्वारा राजा घोषित किया गया।
स्कंदगुप्त नाटक जयशंकर प्रसाद pdf
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जयशंकर प्रसाद की कविता लहर
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कामायनी जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद की अन्य रचनाएँ
- अरुण यह मधुमय देश हमारा -जयशंकर प्रसाद
- आत्मकथ्य -जयशंकर प्रसाद
- आह ! वेदना मिली विदाई – जयशंकर प्रसाद
- चित्राधार – जयशंकर प्रसाद
- तुम कनक किरन – जयशंकर प्रसाद
- दो बूँदें – जयशंकर प्रसाद
- प्रयाणगीत – जयशंकर प्रसाद
- बीती विभावरी जाग री – जयशंकर प्रसाद
- भारत महिमा – जयशंकर प्रसाद
- ले चल वहाँ भुलावा देकर – जयशंकर प्रसाद
- सब जीवन बीता जाता है – जयशंकर प्रसाद
- हिमाद्रि तुंग श्रृंग से – जयशंकर प्रसाद
FAQ (जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय)
जयशंकर प्रसाद का प्रथम नाटक कौन सा है
Ans:
जयशंकर प्रसाद छायावाद के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं सिद्ध कीजिए
Ans:
जयशंकर प्रसाद किस वाद के कवि थे
Ans:
जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली क्या थी
Ans:
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित अपूर्ण नाटक कौन सी है
Ans:
जयशंकर प्रसाद किसके लेखक हैं
Ans:
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य का नाम बताइए
Ans:
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित वीरा काव्य कौन सा है
Ans:
जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है
Ans:
जयशंकर प्रसाद के किन्हीं पांच रचनाओं के नाम लिखें
Ans:
जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी कौन सी है
Ans:
श्रद्धा सर्ग जयशंकर प्रसाद की किस रचना का अंश है
Ans:
जयशंकर प्रसाद का जन्म किस प्रदेश में हुआ था
Ans:
जयशंकर प्रसाद का जन्म कब हुआ था
Ans:
जयशंकर प्रसाद के पिता का क्या नाम था
Ans:
जयशंकर प्रसाद की पत्नी का नाम
Ans:
जयशंकर प्रसाद के गुरु का नाम
Ans:
जयशंकर प्रसाद के श्रेष्ठ भ्राता का क्या नाम था
Ans:
जयशंकर प्रसाद की मृत्यु
Ans:
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